ऐसा देखा गया है कि हम जबरदस्ती खाने पीने के लिए जोर लगाते हैं । कहते हैं – फलां फलां चीज खा ले या पी ले, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा । और हम जबरदस्ती बिना भूख के भी दूसरे का दिल रखने के लिए कोई भी चीज खा या पी लेते हैं । यह विडम्बना है । न भूख होते हुए भी खा लेते हैं । कई बार स्वाद के कारण भी चीजों को खाते चले जाते हैं । क्या यह सब ठीक कर रहे हैं ? दूसरों से मिलने जाते हैं तो बिना पूर्व सूचना के । और घंटों बैठ रहते हैं । इस बात को सोचते ही नहीं है कि कहीं दूसरे का समय तो नष्ट नहीं कर रहे हैं ? अपना समय तो नष्ट कर ही रहे होते है
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