Wednesday, April 18, 2012
यदि हम अपने बडों का कहा मानते हैं, चाहे वह गलत ही क्यों न हो, चाहे वह हमारी आत्मा को अच्छा न भी लगे, सब मान लें तो वे बहुत खुश रहते हैं और यदि उनके कथन को स्वीकार नहीं करते हैं, अपने विचारों को कहते हैं, अपने में एक आत्मविश्वास की झलक दिखाते हैं तो हम गलत हो जाते हैं । यदि दूसरों का कहा मानते रहते हैं तो हम शीघ्र ही बडों की नजरों में प्रिय हो जाते हैं । जब भी वे जैसा भी चाहें, वैसा ही करें । चाहे हम अपना काम छोड दें । इस प्रकार देखा गया है कि सारा समय सेवा करते रहें, आदर की भावना रखते रहें तो ठीक समझा जाता है किन्तु एक बार भी हम उनकी सेवा करने में, उनका कहा मानने में असमर्थ हो जाते हैं तो सारा किया समाप्त हो जाता है ।इसी प्रकार यदि हम किसी के लिए कुछ भी नहीं करते हैं, समय पर कर देते हैं तो हमारी खूब तारीफ होती है, हम प्रिय हो जाते हैं । समाज की व्यवस्थाएं इतनी जडवत हैं कि उनको याद करते ही एक गुस्से का अहसास होता है । लडकी के लिए कई बाधाएं हैं, कई अभिशाप हैं । लडकी का मोटी होना, पतली होना, ठिगनी होना, लम्बी होना, आंखों पर चश्मा होना, बालों का सफेद होना, अनपढ होना आदि अयोग्याएं मानी जाती हैं । जबकि लडकों पर यह नियम पूरी तरह लागू नहीं होता । यहां तक कि लडकी की मोटी आवाज भी एक अवगुण माना जाता है, हमेशा एक मनोवैज्ञानिक दबाव डाला जाता है । खुलकर हंसना, खांसना, छींकना, खुजली करना, चलना, बोलना भी घोर अशोभनीय माने जाते हैं । अपने स्वतंत्र विचार कहना , अपना स्पष्टीकरण बताना भी दोष माने जाते हैं, जबकि इन बातों का लडके पर कोई अंकुश नहीं है ।
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