Wednesday, April 18, 2012
आत्मविश्वास ही सब कुछ है । हम जो कुछ भी देखते हैं, अपना विश्वास देखते हैं,अपना विश्वास ही बताते हैं । प्रकाश है, नहीं दिखता, हवा है, लेकिन दिखती नहीं । इसी प्रकार भगवान है, दिखता नहीं । हम विश्वास को भगवान कहें तो भी ठीक है । चीज एक ही है । नजरिया है भगवान और विश्वास को देखने का । हम उसे भगवान कहकर पुकारते हैं या विश्वास । चूंकि ऐसा कहना है कि अपने पर विश्वास रखो, अर्थात भगवान पर विश्वास रखो । क्योंकि भगवान और विश्वास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक ही लाठी के दो किनारे हैं । लीेकिन सिक्का एक ही है, लाठी एक ही है । लेकिन एक बात है दोनों में से एक को मानना होगा । जब एक को माना जाएगा तो दूसरा स्वयं ही आ जाएगा । हम भगवान को माने तो विश्वास आ जाए और विश्वास को माने तो भगवान आ जाएगा । हम ऐसा तो नहीं कह सकते कि मैं लाठी का एक सिरा ही उठाकर दिखा सकता हूं । एक उठाएंगे, तो दूसरा स्वयं ही चला आएगा । दूसरे को उठाने की जरुरत नहीं पडती । हम सिक्के के एक पहलू को नहीं उठा सकते । दोनों साथ साथ उठ जाएंगे । यही अर्थ है भगवान को जानने का ।
अब दूसरी बात, यह विश्वास अथवा भगवान हम कहां खोजें ? चूंकि ये चीजें दिखती नहीं है, मानना पडता है, विश्वास रखना पडता है । जैसे हवा, प्रकाश या ईश्वर । विश्वास भी दिखता नहीं है, मानना पडता है । हम यह भगवान या ईश्वर कहीं भी देख सकते हैं, किसी भी रुप में देख सकते हैं । इन्सान में भी, राम में भी, कृष्ण में भी, अपने माता पिता में भी, गुरु में भी, बच्चें में भी । यह हम पर निर्भर है कि हम अपना विश्वास या भगवान किसमें और किस रुप में देखते हैं । इसके बाद हमारी शंका दूर हो जाएगी, तब आनन्द का भाव होगा ।
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