Monday, July 12, 2010

कई बार तो ऐसा लगता है कि हम अपनी जरुरत से 75 प्रतिशत ज्‍यादा बोलते हैं और 75 प्रतिशत ही ज्‍यादा सोचते हैं । जरुरी नहीं है कि हम प्रत्‍येक विषय पर बोलें । जरुरी नहीं है। कि हम हर विषय पर जानकाकरी रखते हों, या हर विषय पर सोचें । यह भी जरुरी नहीं है कि हम जिन विषयों पर आज और अभी सोच रहे हैं वह जरुरी है आज और अभी । यह भी हो सकता है कि हम उन विषयों पर सोचते हों जो जरुरी नहीं हैं बल्कि निरर्थक हैं । लेकिन एक बात तो माननी होगी कि हमें ऐसा लगता है कि जब हम बोलते हैं तो लगता है कि ज्‍यादा बोल करहे हैं और जब हम चुप हो जाते हैं तो लगता है कि कम बोल रहे हैं या चुप रहना भी अच्‍छा नहीं लगता । कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अकेलेपन से घबरा जाते हों ? अकेलापन देखकर हमें डर लगता हो इसलिए हम भीड में चले जाते हैं ? दोस्‍तों से मिलते हैं, बातचीत करने लग जाते हैं, शोर मचाते हैं, दूसरों की बुराई करने लग जाते हैं, यानि वह सब कार्य करने शुरु कर देते हैं जिससे अकेलापन समाप्‍त हो जाए, अकेलेपन का सामना न करना पडे ? इसका मतलब तो यह हुआ कि हम अन्‍दर से तो खोखले हैं ? अन्‍दर से भयभीत हैं ? हम अपने को अकेीला पाते हैं तो अन्‍दर छिपा डर हमको खाने को दौडता है ? उस डर का सामना न करना पडें चलो कुछ न कुछ बोलकर उस भय को दबा दें, छुंपा दे । कहा जाता है कि बोलने से और सोचने से हमारी एकत्रित ऊर्जा नष्‍ट होती है । ज्‍यादा बोलने अथवा ज्‍यादा सोचने से हमारी रचनात्‍मक एनर्जी पर बुरा प्रभाव पडता है । ****







जीवन के किसी भी मोड पर कौन व्‍यक्ति एक नयी राह, एक नयी चेतना का अहसास करवा दे, कोई नहीं बता सकता । यदि हम ध्‍यान में लगे रहें तो ज्ञात होता है कि दिन में ऐसे कई अवसर आते हैं जब हम कुछ सीख सकते हैं । जो कुछ करना है, हमें ही करना है । कल कर लेंगे, बाद में कर लेंगे, बहाने हैं और अपने साथ बेईमानी है । जो कुछ करना है आज ही और अभी करना है, इसी वक्‍त । एक स्‍वामी जी ने बताया – आदमी की बातें एक पैसे की भी नहीं हैं । यदि कोई कहे तो मैं यही कहूंुगा कि नहीं । एक पैसा ज्‍यादा है । कुछ भी कीमत नहीं है । एक मौन हो, यही सबसे कीमती है । जो विचार हमारे हैं, हम शब्‍दों में तो बता ही नहीं सकते, बल्कि जो कुछ बताना चाहते हो, जो हमारे विचार हैं, उन पर भी पानी पड जाता है, जब हम बोलकर अपने विचारों को किसी दूसरे को बताने की कोशिश करते हैं । यदि किसी से अपने विचार कहने भी हैं तो मौन में कह सकते हैं ।
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हर तकलीफ एक सन्‍देश लेकर आती है, एक नए जीवन का । जीवन का सुख क्‍या है, दुख के क्षणों में पता चलता है, उससे पहले नहीं । मछली को नहीं पता कि सागर क्‍या है । लेकिन जब बाहर निकाल दिया जाए सागर से, मछली को, तब पता चलता है कि सागर क्‍या है ।
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मैनें एक जगह पढा था आप भी विचार कीजिए ------ ज्ञान प्राप्ति के लिए अध्‍ययन सुख प्राप्ति के लिए व्‍यवसाय संतोष प्राप्ति के लिए परोपकार ईश्‍वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना स्‍वास्‍थ्‍य प्राप्ति के लिए व्‍यायाम में अपना समय लगाएं, समय का सदुपयोग करें ।
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हम अपने जीवनकाल में जो भी काम करते हैं उनका शीघ्र प्रभाव हमारे ऊपर पडता है । हमारे अनुभव खुशी से भरे भी हो सकते हैं और गम से भरे भी । यदि हम प्रसन्‍न हैं, अपने जीवन में एक संतोष की झलक पाते है। तब हम कह सकते हैं कि हम समय का सदुपयोग कर रहे है। । यदि हम बडे बडे पद पा लें, बहुत ज्‍यादा धनी बन जाएं और जीवन की सभी भौतिक वस्‍तुओं को एकत्र कर लें और खूब दिखावटी मान सम्‍मान हो, लेकिन हम अपने अन्‍दर से संतोष का भास न पाएं, हृदय में एक प्‍यास हो तो हम कह सकते हैं कि हम समय का सदुपयोग नहीं कर रहे हैं । ****
दूसरे क्‍या सोचते हैं और कैसा सोचते हैं यह सोचना उनका काम है । कोई हमें छोटा कहता है या बडा, विरोध पैदा न करो । कोई भगवान कहे तो कहो – मुझे तो ज्ञान नहीं, यह सोचना तुम्‍हारा काम है । कोई शैतान कहे तो कहो – मुझे तो ज्ञान नहीं, यह तो सोचना तुम्‍हारा काम है । वह अपने को समझ नहीं लेना चाहिए जो दूसरा कह दे । भगवान जो करता है अच्‍छा करता है । हर काम के पीछे कहीं न कहीं सच होता है, अच्‍छाई होती है । दूसरे शब्‍दों में स्‍वीकार का भाव आना चाहिए ।
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ध्‍यान रखना चाहिए कि सफलता केवल परिश्रम से ही नहीं मिलती । सफलता के लिए परिश्रम जरुरी है किन्‍तु पर्याप्‍त नहीं । उसके लिए व्‍यावहारिक ज्ञान, सूझबुझ,धैर्य, आत्‍मविश्‍वास, एकाग्रता आदि कई गुणों का होना जरुरी है । गलत ढंग से, काम का बिना समझे, उचटे मन से, उददेश्‍य की स्‍पष्‍ट जानकारी पाए बिना कितना ही थका देने वाला परिश्रम किया जाए तो भी सफलता मिलती है, सम्‍भव नहीं । इस तरह के आवश्‍यक गुणों के अभाव में मेहनत करते रहने वाले को सफलता नहीं मिलती तो कहा जाता है कि पिछले जन्‍म के कर्मों के कारण ईश्‍वर के भाग्‍य विधान से उसे सफलता नहीं मिली है – इसे ध्‍यान में रखना होगा ।
परिस्थितियों का बारीकी से अध्‍ययन करने और तदनुसार निर्णय लेने की शक्ति का इस्‍तेमाल यह मानसिक क्षमता सभी में होती है । परिस्थितियों का बारीकी से अध्‍ययन करने और समझने से उपयुक्‍त निर्णय लेने में भूल नहीं होती । इसलिए ऐसी भूल से बचा जाए तो अधिकत्‍तर काम में हाथ लगाते ही वह पूरा होने लगता है । अभ्‍यास और प्रयोगों से हर चीज में निखार लाया जा सकता है । आत्‍मविश्‍वास बढाने वाली पुस्‍तकों का अध्‍ययन, आशावादी दृष्टिकोण, विधायक चिन्‍तन जैसे अभयास इस क्षमता को बढाते हैं । आत्‍मविश्‍वास बढाने के लिए आटो सजेशन भी एक प्रभावशाली उपाय है । जिन गुणों की कमी महसूस की जाती है उनके बारे में बार बार सोचना और अपने में उन गुणों का विकास करना ही आटो सजेशन है ।

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