कुछ लोग अच्छे होते हैं और कुछ लोग अच्छे नहीं होते हैं । यह भी सच है कि यह हमारे देखने का नजरिया है । हम देखते हैं कि लडकियों में ज्यादा सहजता,सरलता है, बनिस्बत लडकों के । हमें देखना होगा कि हम कैसे हैं, हमारा व्यक्तित्व कैसा है ? व्यक्तित्व एक ही होना चाहिए । दोनों होना ठीक नहीं । साफ पानी में गन्दा पानी मिला दो या गन्दे पानी में साफ पानी, कोई फर्क नहीं पडता – परिणाम गंदा ही हैं ।
अगर यह कहा जाए कि कम बोलने वाले अच्छे हैं, यह सोचना गलत होगा । यह ठीक भी नहीं कहा जा सकता । सुन्दर खिला हुआ चेहरा, हंसता हंसाता चेहरा सबको अच्छा लगता है, गम्भीर चेहरा कैसे सुन्दर हो सकता है ? अगर यह कहा जाए कि हंसो उस समय जब हंसना उचित हो । गम्भीर उसस समय रहो, जब जरुरत हो – यही ठीक है । यह भी सोचने पर ही निर्भर है ।
याद रखो – सारी बातें एक खास व्यक्ति के लिए नहीं होती । अलग अलग बातें अलग अलग लोगों के लिए होती हैं । हम गलती से सभी बातें अपने लिए समझ बैठते है। । इसलिए ध्यानपूर्णक समझना जरुरी है । समझ का ऊंचे स्तर पर होना जरुरी है ।
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जीवन को ऐसे जिओ जैसे जीवन एक नाटक है और हम अभिनय कर रहे हैं । एक अभिनय, एक झूठ है सब कुछ । पल पल का जीना । तब दुख का सवाल ही पैदा नहीं होता । ऐसा कुछ भी नहीं जिसकी वजह से उत्तेजना हो । जरुरी है समझ हो । एक बार समझ में आ जाए तो सब कुछ मिल जाता है । क्या चीज अच्छी है और क्या बुरी, क्या जरुरी है और क्या नहीं, समझ आ जाता है, दोहरी स्थिति रह ही नहीं जाती ।
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जीवन का अनुभव देखा होगा आपने । कई बार मांगने से कुछ नहीं मिलता और कई बार बिना मांगे ही बहुत कुछ मिल जाता है । तब कोई मांग न रखते हुए ही जीआ जाए तो कैसा रहेगा ? सुना है सफलता ही असफलता की सीढी है । जब तक किसी एक कार्य के प्रति सफलता प्राप्त नहीं हुई है तब तक सफलता प्राप्त करने के लिए एक उत्सुकता बनी रहती है, एक इंतजार होता है । किन्तु क्या हम नहीं महसूस करतेू कि सफलता मिल जाने पर कोई उत्साह नहीं रह जाता है । ऐसा लगने लगता है जैसे कुछ हुआ ही न हो । ऐसा लगता है कि जैसे सफलता की वह उत्तेजना, उत्साह है ही नहीं जो सफलता पाने से पहले था । तब यह क्या है ? क्या हम सफलता पाने की कामना छोड दें ? यह भी बहुत विडम्बनापूर्ण होगा । तब मान लीजिए, हम उनके प्रति बहुत प्रेम प्रदर्शित करते हैं, उन्हें बहुत चाहते हैं, उनके व्यक्त्वि से प्रभावित होते हैं, लेकिन जब उनके निकट आते हैं तो क्या वह प्रेम, वह आकर्षण, वह उत्साह रह जाता है ? नहीं । ****
हम लोग हमेशा ईश्वर से कुछ न कुछ मांगते ही रहते हैं । ईश्वर कितना ही दे दे, कम लगता है । दूसरों के क्षणिक आराम को देखकर ईर्ष्या से भर जाते हैं । हमेशा आगे आने वाले समय में सुख मिल जाने की कल्पना करते हैं । लेकिन क्या ऐसा होता है ? जितना हमें मिला है, उसका आभास किया है ? जितना भगवान ने दिया है उसका धन्यवाद किया ? कभी ईश्वर को धन्यवाद के भाव से याद किया है ? कभी झूम झूम कर नाचा है ? कभी अहो भाव से निकला – तेरा लाख लाख शुक्र । मैं बहुत ही प्रसन्न हूं ।
कभी कभी भय से पीडित होकर मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाना, जीवन के उतार चढाव का ही एक रुप तो है । अपने को समझने का असफल प्रयास किया जाता है । मन का डर न जाने कितनी कोरी कल्पनाओं का जाल बुन लेता है, इस पर कभी विचार किया है ? भयग्रस्त व्यक्ति किस प्रकार अपनी शक्तियों को खो देता है, अपना विकास होने पर एक बंदिश लगा देता है, जबकि भय निर्मूल है । एक खौफ और संशक्ति वातावरण क्यों आ जाता है ? अगर हम चाहें भय से छुटकारा पा सकते हैं ? हां, यदि धन्यवाद का भाव हो । एक पूजा का भाव हो, जो है जैसा है, स्वीकार है । ऐसा ही होना था, ऐसा ही हो रहा है । धीरे धीरे भय समाप्त होने लगेगा । जो हो भी नहीं रहा है, हुआ भी नहीं है, मात्र होने की कल्पना से भयग्रस्त होकर वर्तमान के सुन्दर पलों को नष्ट करना कहां तक सार्थक है ? जो होगा, वह होगा, लेकिन यह क्यों भय किया जाता है कि जो आप सोच रहे हैं, वही होगा – क्या मालूम वैसा न हो ?
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यदि हमारे बीच शैक्षिक योग्यताएं कम हैं तो निराश नहीं होना चाहिए । अपने बीच आत्मविश्वास को जागृत करके हम सफलता पा सकते हैं । बस आशा और विश्वास की यात्रा जारी रहनी चाहिए । ****
भविष्य की सुरक्षा की भावना और भय की भावना में क्या अन्तर है ? क्या इसको आसानी से समझा जा सकता है ? शायद नहीं । भविष्य की सुरक्षा का लबादा ओढकर कहीं हम भय की भावना से तो नहीं जी रहे ? कल का क्या भरोसा, हम रहें न रहें, यह सोच रहे या न रहे, तब वर्तमान के क्षणों में आनन्द क्यों नहीं आ पाते ? अगर हम अपने बीते हुए समय पर सूक्ष्म दृष्टि से विचार करें तो पायेंगे कि हम हमेशा ही भविष्य की सुरक्षा से ही जीते रहे हैं, हमेशा भविष्य की सुरक्षा ने हमें भयभीत बना दिया है और हम वर्तमान के क्षणों को पूर्णत वंचित हो जाते हैं ।
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दूसरों से प्रश्न पूछना भी एक कला है । अपनी बात में एक ऐसा आकर्षण हो कि दूसरा बात को समझे, न कि मुंह चिढाकर हमें ही जलीकटी सुना दे । दूसरों से प्रश्न पूछकर, अपनी जिज्ञासा प्रकट करके उसके मन को टटोलें । हो सकता है जीवन के सत्य से परिचित हो सको । प्रश्न पूछना बुरा नहीं है लेकिन गलत ढंग से पूछा गया प्रश्न बुरा है ।
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दौड कितनी भी दौड ली जाए, अन्त में पायेंगे एक ठहराव । रुको । और आगे नहीं । कुछ नहीं । अब और ज्यादा दौडा नहीं जाता । अब आराम चाहिए । शांति और संतोष चाहिए । अब ऊंचे ऊंचे महल नहीं सादापन चाहिए । जो जैसा है ठीक है । सुन्दर है । अब कोई इच्छा नहीं है । सब कुछ मिल गया है । अब मस्तिष्क को आराम देना है । सभी सुखों का रास्ता मिल गया है जो अपने अन्दर से शुरु होता है । अब धीरे धीरे चलने को जी चाहता है । अब भागने की चाह नहीं है । सादे विचार, बातचीत,खाना पीना,पहनना,मधुर व धीमी गति से ।
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