हर व्यक्ति के जीने का तरीका अलग अलग होता है । अपने अपने देखने का तरीका होता है ।संसार मोह माया है अथवा नहीं, इस बारे में लोगों के अलग अलग विचार हैं । कई लोग इस जीवन को डरते हुए जीते हैं, कई शान से जीते हैं । कई तो ऐसे हैं जिन्हें यह भी पता नहीं कि वह क्यों जी रहे हैं, हम कैसे जीएंगे या हमें कैसे जीना चाहिए ? अपने आप को पहचनना ही सही मायने में जीना है । इंसान सत्य को जान जाए तो वह भगवान हो जाता है । हम भी भगवान हो सकते हैं । लोगों के ये जो भगवान हैं, क्या आप जानते हैं कि ये भगवान क्यों माने जाते हैं, क्यों पूजा की जाती हैं इनकी ? दरअसल इन्होंने अपने को जान लिीया था, सत्य को पहचान लिया था ।
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यदि हम यह प्रण कर लें कि सदा मुस्कराते हुए जीने का प्रयास करुंगा, सचेत और चैतन्य, अवेयर होकर जीने का प्रयास करुंगा, कडी मेहनत की भावना से जीने का प्रयास करुंगा तो जीवन में प्रेम का रस पैदा होता है ।
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कहते हैं कि मैं गुस्सा करता ही नहीं हूं, वह तो वैसे ही कभी कभी हो जाता है । गुस्सा तो लोग दिलाते हैं, मैं तो बहुत ही नम्र हूं, गुस्सा करना गलत समझता हूं । लेकिन यह धारणा बहुत गलत है । अगर हमारे भीतर गुस्सा है तो वह जरुर आएगा । गुस्सा हमारे बीच दबा हुआ है, उसे निकलने का मौका चाहिए, वह मौका कोई भी हो सकता है । मान लीजिए, हमको किसी ने गाली दी है तो हम गुंस्से में भर जाते हैं । साफ जाहिर है गुस्सा दबा हुआ था, जो गाली के बहाने बाहर निकल आया है। और यदि गुस्सा दबा हुआ नहीं होगा तो गाली का कुछ भी असर नहीं होगा, कोई अर्थ न होगा गाली का । हां, यदि गुस्सा दबा होगा तो गाली अपना प्रभाव दिखाएगी ।
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खण्डर बताते हैं कि एक दिन हम महल थे, शान शौकत थी । खण्डर बताते हैं कि एक दिन हमारा महल भी खण्डर हो जाएगा ।
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एक आदमी धूप में बैठा था । दूसरा व्यक्ति आया और बोला – अरे खाली क्यों बैठे हो, धन कमाओ, बंगला बनाओ, नाम कमाओ, तब आराम से जीना । पहला बोला – वह तो मैं कर ही रहा हूं, मैं आराम से जी ही रहा हूं । यदि इतना सब कुछ करने के बाद भी आराम न मिला तो ? बाद में आराम मिल सकेगा अथवा नहीं, कहा नहीं जा सकता । हां, तुम जरुर मेरे आराम में बाधा उत्पन्न कर रहे हो । सिकन्दर ने भी कहा था – मैं इस देश को जीत लूं, उस देश को जीत लूं, तब आराम से बैठूगां । लेकिन आराम बाद में नहीं मिलता ।
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एक बार बुदध के शिष्यों ने बुदध से पूछा – आप शांति के बारे में भी कुछ कहें, लोग शांति चाहते हैं । तब बुदध बोले – लोग शांति नहीं चाहते हैं । शिष्य बहुत हैरान हुए तो बुदध ने कहा तुम आज गांव में जाकर लोगों से पूछो कि तुम्हें क्या चाहिए ? शिष्य गांव गये और पूछा कि उन्हें क्या चाहिए ? आश्चर्य हुआ कि किसी ने भी शांति पाने के लिए नहीं कहा । किसी ने बेटा मांगा, किसी ने धन, किसी ने मकान, किसी ने नौकरी, किसी ने पद प्रतिष्ठा ।
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हम लोगों को इस बात का कतई भी एकसास नहीं कि सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख चक्र चलता रहता है ।
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जीवन दुखों का चक्र है और दुखों का कारण है हमारी इच्छाएं ।
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यह मुझसे बडे हैं, पद में भी और आयु में भी । मुझे अपने सभी बडों का आदर करना चाहिए । यदि इसको ध्यान में रख लिया जाए तो असफलता के द्वार बन्द हो सकते हैं । बातचीत करते समय यह सोचना कि उचित किया गया कार्य अथवा बात उचित थी ? यदि उचित नहीं था तो ऐसा क्यों किया गया, यह प्रश्न पूछना है अपने आप से ।
**** थोडा घुलमिलकर रहना भी अनिवार्य सा हो जाता है । ऐसा महसूस न होने दिया जाए कि हम तुमसे अलग हैं । जीवन को सिर्फ भविष्य मानकर ही नहीं बल्कि वर्तमान में भी देखना जरुरी है । खुश रहना चाहिए । रोता हुआ चेहरा न अपने को अच्छा लगता है और न दूसरों को ही । मुस्कराता हुआ चेहरा रखिए ।
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व्यक्ति जैसा साहित्य पढता है, वैसा ही उसका मन मस्तिष्क होने लगता है । गम्भीर साहित्य, बच्चों का साहित्य, धार्मिक, हास्य, सामाजिक, जासूसी और अश्लील साहित्य, जैसा भी साहित्य व्यक्ति पढता है, वैसा ही उसका दिमाग बन जाता है । पिर अच्छे बुरे की पहचान तो सभी को है । व्यक्ति की पहचान उसके पसन्द के साहित्य से लगायी जा सकती है ।
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यदि हम यह कहें कि मजा आ गया कि हमें काम नहीं करना पडता – हमारी यह धारणा गलत होगी । यहय आलस और असफलता की ओर बढते कदम हैं ।
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