Wednesday, July 21, 2010

अपने बीच अच्‍छे परिवर्तन लाने की इच्‍छा हो तो परिवर्तन लाए जा सकते हैं । जैसा भी हम सोचते हैं, वह हो सकता है यदि हम विषय का रचनात्‍मक पाजिटिव पहलू सोचते हैं । घरवालों के प्रति हमारा व्‍यवहार अच्‍छा हो तो जरुरी है कि हम अपने परिवारजनों के प्रति प्रेम से रहें । बडों का आदर करें । कई बार घरवालों से विवाद हो सकता है । सभी अपने अपने अधिकार की बातें करने लगते हैं, खासतौर से मां बाप और पत्‍नी । मां को अपने बच्‍चे से ज्‍यादा उम्‍मीदें होती हैं । वह चाहती है कि मेरा बेटा या बेटी मेरी आशाओं के अनुरुप ही कार्य करें । वह मां बाप अपने अच्‍चों से खुश रहते हैं जिनके बच्‍चे अपने माता पिता के विचारों के अनुरुप ढल जाते हैं । मैं यह बात अपने अनुभव से लिख रहा हूं । मैंने जब भी अपने माता पिता की आशाओं के अनुरुप कार्य किया, उन्‍हें बहुत प्रसन्‍नता हुई । मैंने कोई तोहफा लाकर नहीं दिया, बस उनकी बात को सुना एवं उदारवादी विचार प्रकट किए । मैंने यह भी देखा कि यदि हम अपने मां बाप का सम्‍मान करते हैं तो वे भी हमारे विचारों का सम्‍मान करते हैं । हमारी सारी इच्‍छाओं की पूर्ति भी करने को तैयार हो जाते हैं । मां का दिल और बाप का दिल इतना कोमल होता है कि छोटी छोटी बाधाओं में भी टूटने को हो जाता है । मां बाप कहते है मेरे बच्‍चे ही तो मेरी सम्‍पत्ति हैं । वे अपनी इस सम्‍पत्ति को भरा भरा एवं खुश देखना चाहते हैं । मैं उदारवादी विचारों का हूं । मैं नई पीढी की भावनाओं को समझता हूं लेकिन जब नई पीढी के अपनी ही सारी मर्जी चलाना चाहें तो मैं अनुदार विचारों का हो जाता हूं । इसलिए मैं स्‍वीकार करता हूं कि मेरे बीच नये और पुराने का ऐसा समावेश है कि कई बार दूसरों को ताज्‍जुब होता है । नए पुराने में मैंने ऐसा सामंज्‍स्‍य बांधा है कि कहीं भी टकराव नहीं होता है ।
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हर कोई चाहता है कि उसकी पत्‍नी उसके तथा उसके परिवारजनों के विचारों को अपना ले । लेकिन ऐसा होता नहीं है ।
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यदि नये लोग यह समझ लें कि हम पुराने लोगों को बदल सकते हैं, एकदम एक साथ नहीं बदल कर धीरे धीरे बदल सकते हैं, यह आत्‍मविश्‍वास की भावना की जीत के रुप में बदलने लगती है ।

जो अशांत हैं और अपनी मर्जी में रहता है और अपने बीच जो मैं का भाव रखता है, वह क्‍यों किसी के प्रति इतना समर्पित हो । उसको अपने तरीके से जीने का पूरा हक है । क्‍यों आशा करते हो कि वह हर बार तुम्‍हारा सम्‍मान ही करे, तुम्‍हें अपनी आंखों में बसाकर ही रखें ? क्‍या यह जरुरी है कि हर बार कोई आपका ही इंतजार करता रहे ? कई बार दोतरफा विचार आते हैं । हो सकता है कि कोई मित्र परेशानी में हो और ऐसे आलम में उसने आपको कुछ तीखा कह दिया हो । आपको ज्‍यादा गौर नहीं करना चाहिए । जैसे ही उसकी परेशानी खत्‍म होगी, वह पुन आपके साथ अच्‍छा व्‍यवहार करना आरम्‍भ कर देगा । यह जरुरी तो नहीं कि आप हर बार उससे अच्‍छे बर्ताव की उम्‍मीद करें ? आखिर वह भी तो इंसान है, उसके बीच भी अच्‍छी बुरी भावनाएं हैं, वह कोई मशीन थोडे ही है कि जो हर बार एक सा परिणाम दे । केवल मशीन ही एक सा परिणाम दे सकती है । हो सकता है उसने अपनी बात पर गौर न किया हो । उसे पता न चला हो कि आपके साथ क्‍या व्‍यवहार कर दिया जो आपको अजीब लगा ।कुछ भी हो सकता है । लेकिन इतना तो स्‍पष्‍ट है कि हर व्‍यक्ति में दो रुप होते हैं – एक अच्‍छा, एक बुरा । एक रुप ऐसा है कि जिसमें दूसरे की भावनाएं आपके प्रति प्रेमपूर्ण होती हैं, आदरपूर्ण होती है ।
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एक पल तो आप घबरा जाते हैं ।न जाने क्‍या क्‍या कल्‍पनाएं करने लग जाते हैं । विवाह के बाद पति पत्‍नी के बीच झगडे क्‍या होते हैं ? हो सकता है कि आपका मित्र आपसे जो व्‍यवहार कर रहा है, वह आपकी समझ से परे हो । आपसे कोई गलती हुई होगी तभी तो आपका मित्र आपसे कटु व्‍यवहार करता है, अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करता है । अपने दोष को पहचानने का प्रयास करना चाहिए । आप अपने को दिलासा दीजिए और होशपूवर्क विचार कीजिए और अपने बीच ऐसा भाव उत्‍पन्‍न कीजिए जिससे तथ्‍यों की गहराई तक पहुंचा जा सके ।

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तुम दो हो । तीसरा नहीं आना चाहिए । तीसरा कोई भी हो सकता है, कोई स्‍त्री या पुरुष ही नहीं बल्कि कोई भी हो सकता है । मां बाप, बहन भाई,दोस्‍त, हजारों रिश्‍ते । ****
आदमी चाहे कितना ही बोलता हो, चिल्‍लाता हो, अंहकार में डूब रहा हो, घमंड करता हो, अपने शरीर का, शक्ति का, अपने स्‍वास्‍थ्‍य का, अपनी सुन्‍दरता का, डिंगे हांकता हो । बीमार होने पर सब खत्‍म हो जाता है । बीमार मानसिक रुप से भी हो सकता है और शारीरिक रुप से भी ।
**** औरत की समझ भी अपने स्‍तर की ही होती है । कैसी ? यदि औरत पर पुरुष अधिकारपूर्ण व्‍यवहार करता है तो औरत कहती है अत्‍याचार किया जा रहा है और यदि पुरुष स्‍वतंत्रता देता है तो कई बार औरत स्‍वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाने लगती है ।

5 comments:

  1. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. मैं तो अविवाहित हूँ पर आपकी यह बात
    "हर कोई चाहता है कि उसकी पत्‍नी उसके तथा उसके परिवारजनों के विचारों को अपना ले । लेकिन ऐसा होता नहीं है."
    दिमाग में बैठ बैठ गयी है.
    देखूँगा कितनी सत्य है.

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