Sunday, July 25, 2010

झूठी शान और प्रतिष्‍ठा के लिए कितनी चिन्‍ताएं और परेशानियां पैदा कर लेते हैं हम । कहीं दूसरे को बुरा न लगे । लोग क्‍या कहेंगे ? इसी छटपटाहट में तनाव से ग्रस्‍त हैं हम । और तब समाधान खोजते हैं बाहर से, धन से ।
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कभी कभी हमारे बीच इतना उत्‍साह और आत्‍मबल उत्‍पन्‍न हो जाता है कि अनुभव होता है जीवन सुन्‍दर है । और कभी कभी इसके विपरीत । तडप, जीवन के प्रति निराशा । शायद यह सच ही किसी न कहा है जीवन दुख सुख का चक्र है । जीवन के हर क्षण में दो पहलू हैं ------

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मैंने सुना है विवाह के बाद सास बहू का संघर्ष चलता रहता है । यह संघर्ष भी स्‍वाभाविक सा है । झगडा, ईर्ष्‍या,तुनुकमिजाजी,द्वेष,अंहकार कारण कोई भी हो सकता है । इन दोनों के संघर्ष में तकलीफ होती है पतिदेव को । मां की सुनता है तो पत्‍नी नाराज । पत्‍नी की सुनता है तो मां नाराज । दोनों की न सुनें तो दोनों नाराज ।
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आज विक्षिप्‍तता का बादल तेजी से बढता ही जा रहा है । इसको रोका है रिश्‍तों ने । अगर रिश्‍ते न होते तो बादल बिजली बनकर सामने जरुर आते ।
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एक प्रश्‍न है । क्‍या प्रतिभा ईश्‍वरीय देन है ? इस बारे में कई लोगों ने कई बार सोचा । किसी का कुछ होना या बनना क्‍या व्‍यक्ति के प्रयासों का परिणाम है अथवा प्रतिभा ईश्‍वर की देन है ? किसी का धर्म में रुचि लेना, किसी का राजनीति में, किसी का सामाजिक कार्य में अथवा किसी का बेईमानी,बदमाशी, उच्‍छंख्‍लता में – यह सब स्‍वाभाविक है अथवा ईश्‍वर की देन । अभिनय के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, कला के क्षेत्र में योग्‍यता व्‍यक्ति के परिश्रम का परिणाम है या ईश्‍वर का जन्‍मजात प्रतिभा गुण ? कई बार हम देखते हैं कि कुछ लोगों का स्‍वभाव बहुत सुन्‍दर होता है, आकर्षक होता है, कुछ का बदसूरत, गलत और गन्‍दा व्‍यवहार । क्‍या यह सब स्‍वाभाविक होता है ? यदि नहीं तो क्‍या अपनी नेचर को बदला जा सकता है ? हो सकता है किसी खास वातावरण,परिस्थिति एवं मार्गप्रदर्शक का प्रभाव ऐसा हो ? लेकिन कई बार माहौल एवं मार्गदर्शन होने पर भी वह नहीं होता है । एक कक्षा में पढ रहे बच्‍चे – कुछ प्रथम स्‍थान पर और कुछ असफल । शायद यह प्रश्‍न हमेशा बना रहेगा ------ शायद इसका उत्‍तर यथोचित नहीं ।

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मैंने एक सुन्‍दर तस्‍वीर बनाई थी, जिसे उसने पसन्‍द किया था । सबने पसन्‍द किया था । बाद में मैने ही उस तस्‍वीर को बिगाड दिया था, बदसूरत बना दिया था । सुन्‍दरता खत्‍म कर दी थी, मधुरता मिटा दी थी जिसे उसने नापसन्‍द किया था । उसने बुरी सी सूरत बनाकर कहा था यह क्‍या कर दिया तुमने ? मैंने कहा – मैंने इसे सुन्‍दर बनाया था, मैंने इसे बदसूरत किया था, मैं ही इसे सुन्‍दर बनाऊंगा । सच । हम ही सुन्‍दर तस्‍वीर बनाते हैं, बाद में खुद ही बदसूरत कर देते हैं, सुन्‍दर बनाने के लिए ।

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एक प्रश्‍न का उत्‍तर एक नहीं, अनेक हैं । उतने, जितने तुम चाहो । सभी बदले बदले, उलझे सुलझे । अच्‍छे बुरे । छोटे बडे । रचनात्‍मक विध्‍वंशात्‍मक लेकिन ठीक क्‍या है ? सच क्‍या है ? खोजना कठिन लेकिन असम्‍भव नहीं । मन के बदलते ही हमारे उत्‍तर भी बदल जाते हैं । प्रश्‍न एक है उत्‍तर अनेक । दूरी अनन्‍त है ।

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चलते विचारों का दमदम मधुमक्‍खी की तरह घूम रहा है, अपना कारवां ढूढ रहा है । ये कारवां एक दो दिन का नहीं, आगे बढ जाना है । अपना काम शुरु कर देना है । सुख दुख, हंसना, रोना लेकिन उसे अपना काम करना है, चलते चलते विचारों का दमदम मधुमक्‍खी की तरह घूम रहा है, अपना कारवां ढूंढ रहा है ।

2 comments:

  1. इमानदार और सद्चरित्र व्यक्ति के साथ या मध्यस्थता से जीवन के ऐसे द्वन्द से निकलने में आसानी होती है ,लेकिन बरी मुश्किल से मिलते हैं ऐसे लोग आज इस दुनिया में | वैसे मनुष्य को हर हाल में सत्य व न्याय का ही साथ देने का प्रयास करना चाहिए |

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