Friday, August 22, 2014

ज्‍यादातर लोगों में विचारों का द्वंद्व चलता रहता है और वह भी निरन्‍तर । कभी कभी विचारों की धक्‍कम धकका इतनी होती है कि एकदम घबराहट पैदा होने लगती है । कभी बीते हुए समय को याद करते हुए, कभी आज को याद करते हुए और कभी भविष्‍य की कल्‍पनाओं को लेकर । हालांकि वक्‍त विचारों की तेजी को कम कर देता है लेकिन विचार तो चलते ही रहते हैं ।विचार तो नेगेटिव भी चलते हैं और पाजिटिव भी । अगर हम उन चलते हुए विचारों को लिखना शरु कर दें तो हम देखेंगे कि ऐसा धाराप्रवाह कचरा बह रहा है जिसे देखकर स्‍वयं ही दुख होगा । यह दुख कई बार समय बीतने पर दिखता है । कई बार तो अपने पर विचार करते करते दिमाग घूम जाता है । एक ही व्‍यक्ति के प्रति कभी उत्‍साह पैदा हो जाता है तो कभी उसी व्‍यक्ति के प्रति निराशा । माता पिता के प्रति, भाई बहन के प्रति, पति पत्‍नी के बीच और मि’त्रों के बीच कभी कभी इतना द्वंद्व छा जाता है कि सभी एक दूसरे को काटने को दौडते हैं, एक दूसरे के प्रति आरोप लगाते है और भला बुरा कहते हैं लेकिन जल्‍दी ही वही सब एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते है और हंसने गाने लगते हैं । अजीब हैं हम लोग । लिखी गई पंक्तियों से एक बात तो स्‍पष्‍ट है कि जितनी धारणा रखी जाएगी, पूरी न होने पर कष्‍ट होगा । ऐसा लगता है कोई भी आदमी न बुरा होता है और न अच्‍छा । दोनों होता है अच्‍छा भी और बुरा भी या यूं कह लीजिए न अच्‍छा होता है और न बुरा, यह सब तो अपने देखने का नजरिया है या यूं कह लीजिए वक्‍त वक्‍त की बात है । अपने मन में किसी के प्रति गुस्‍सा है तो उसके प्रति नफरत पैदा होने लगती है चाहे कुछ ही देर पहले उसके प्रति प्रेमपूर्वक बने हुए थे । लगता है यह क्रम तो चलता ही रहेगा ।

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