Friday, August 22, 2014

अकेलेपन में विचार तेजी से चलते हैं । बुरे भी, अच्‍छे भी । बुरे ज्‍यादा अच्‍छे कम । दुख को स्‍वीकार करना भी एक वरदान जैसा ही तो है ।
****
झगडे की जड ज्‍यादा बोलना तो नहीं , जरा सोचिए ।
सत्‍य बोला नहीं जाता जिया जाता है ।
माफ करना सबसे बडा गुण है । क्‍या आपमें यह गुण है ? यदि नहीं तो जरा सोचिए । एक साथ सबको खुश नहीं रखा जा सकता । एक खुश है तो हो सकता है कि दूसरा खुश न हो ।

No comments:

Post a Comment