ऐसे बहुत से लोगों को देखा है जो ऊचे ऊंचे पदो पर तो पहुंच गये हैं लेकिन उनके भीतर एक संतोष नहीं दिखता । वे बेहद परेशान रहते है। । उनका जमा किया हुआ पैसा भी गलत खर्च होता ही रहता है । दुख तो इस बात का है कि पढे लिखे लोग भी दोड में शामिल है और दिन प्रतिदिन तनाव में घिरते चले जाते है। । तब जीवन में सही मायने में जीना क्या है । शायद हम अपनी भीतरी शक्ति को पहचानना भूल गये हैं । यूं ही लोगों की देखा देखी दौड में भागना ठीक नहीं । बाहरी दौड में चैन नहीं मिलता । जीवन में संतोष हो, एक ठहराव हो, यह जरुरी
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