Friday, August 22, 2014

आग और पानी भी अपनी विशेषताए लि‍ए हुए हैं । आग का सही इस्‍तेमाल किया तो लाभ ही लाभ । आग से रोटी बनती है, जिससे हमें जीवन मिलता है । आग की गरमाहट से सर्द शरीर को राहत मिलती है । लेकिन आग का दुरुपयोग किया तो हानि ही हानि । आग के प्रति असावधानी हमें जला देती है । हमारे जीवन को समाप्‍त करने की दक्षता रखती है ।
पानी की विशेषता भी अनोखी है । प्‍यासे के लिए पानी ही जीवन है । पानी का दुरुपयोग सर्वनाश है । बाढ की स्थिति में पानी जीवन को कष्‍ट देता है ।
करंट भी अपनी अनोखी विशेषताएं लिए हुए है । ठीक से उपयोग किया तो हजारों कार्यों में उपयोगी होता है । ऊर्जा का रचनात्‍मक पक्ष है । लेकिन करंट का गलत प्रयोग, करंट के प्रति असावधानी मौत का द्वार खोल देता है । इसी प्रकार जीवन की ऊर्जा के भी दो पक्ष हैं । लोग ऊपर से कुछ और विचार रखते हैं और भीतर से कुछ और । वह विचार चाहे अपने प्रति हो या किसी दूसरे के प्रति । ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्‍हें जानकर हम कह सकते हैं कि हम दोहरे मापदण्‍ड के शिकार हो रहे हैं । वास्‍तव में ऊपर से कुछ और भीतर से कुछ होने का एक ही कारण है और वह है झूठी प्रतिष्‍ठा । साधु लोग तो कहतेू हैं कि यह मात्र झूठी प्रतिष्‍ठा है । लेकिन हम लोगों की समझ से यह बात दूर है । झूठी प्रतिष्‍ठा के
चक्‍कर में हम फंसते ही जा रहे हैं और यह फंसना और भी अच्‍छा लगता रहा है । हम इस प्रतिष्‍ठा को पाने के लिए ही झूठ बोलते हैं । इसे झूठ कह लो या दो विचार से चलना । बाहर कुछ और भीतर कुछ । यह भी देखा गया है कि व्‍यक्ति विशेष के लिए वैसा ही बनना पडता है । जैसे कोई दोस्‍त बहुत उम्‍मीद और उत्‍साह से हमारे पास आता है तो हम न चाहकर भी हंसते हैं, मुस्‍कराते हैं, बातें करते हैं, चाहे अन्‍दर से मन कितना ही इस सबके विपरीत हो । लेकिन झूठी प्रतिष्‍ठा के लिए करना पडता है यह सोचकर कि कही दोस्‍त को बुरा न लग जाए ।
हम लोग अपने बच्‍चे को एक खास स्‍कूल में दाखिल कराने के लिए एडी चोटी एक कर देते हैं । लेकिन दूसरी ओर स्‍कूल प्रशासन को गाली भी देते हैं । फीस के खर्च, पढाई लिखाई के खर्च और परेशानियों से भी घबराते हैं, लेकिन ऊपरी तौर पर स्‍कूल की तारीफ करना नहीं भूलते ।
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हमें अपने सामाजिक जीवन में कई लोगों से मिलना होता है । हम देखते हैं कि कुछ लोगों के बातचीत करने का अंदाज इतना सुन्‍दर होता है कि शीघ्र ही वह दूसरों की निगाहों में छा जाते हैं । लेकिन साथ ही साथ हमारे हाव भाव ऐसे नहीं होने चाहिए जिससे दूसरे पर बुरा प्रभाव हो । बातचीत करते समय हमें इस बात का विशेष रुप से ध्‍यान रखना चाहिए । कई लोगों की बुरी आदत होती है कि वे बातें करते समय अपनी आंखों को कटका मटकाकर बात करेंगे । कई लोग अपने हाथों को बार बार ऊपर नीचे इस प्रकार घुमाते रहेंगे मानो बात जुबान से नहीं हाथों से हो रही हो । कई लोग दूसरों से बात करते समय या बात सुनते समय अपने पैरों को जमीन पर बजाते रहेंगे । यह सब अशोभनीय है । कई लोग बात को ध्‍यान से नहीं सुनते बल्कि अपनी धुन में गीत गुनगुनाते रहेंगे अथवा अपना ध्‍यान आसपास की चीजों को देखने में खो जाएंगे, जब उनका ध्‍यान हटाया जाए तो वे तुरन्‍त कह उठेंगे – हां, क्‍या कह रहे थे तुम ? इससे स्‍वाभाविक रुप से दूसरे पर बुरा असर होता है । हमें बातचीत करते समय अथवा बात सुनते समय इस बात का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए कि कहीं हमारे हावभाव किसी को भददे तो नहीं लग रहे हैं ? बातचीत करते समय एकाएक जोर से अटठास लगाना, खुजली करते रहना, नाक में उगली देते रहना, अशोभनीय है ।

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