इस बात को समझना होगा कि ऐसे वे सब कौन से कारण है जिनके परिणामस्वरुप हम
किसी दूसरे के शब्दों को सुनकर ही बहुत खुश हो जाते हैं या दुखी हो जाते हैं
। किसी ने डांट दिया तो हम उस व्यक्ति के
प्रति तुरन्त गुस्सा करने लगते हैं और अपने को असंतोष में भर लेते है। । इसी
प्रकार जो कोई दूसरा व्यक्ति हमारी सोच के अनुसार कार्य करता है तो हम खुश हो
जाते है। इस बात को समझना होगा कि जो हम पर आरोप लगा रहे हैं वह यदि सत्य है तो
उसको स्पीकार करो और यदि झूठा है तो स्पीकार मत करो, उस झूठे आरोप का अपने से
जोडने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता । हमें अपने पर लगे झुठे आरोप को अनदेखा कर
आरोप लगाने वाले को बहुत ही समहजता से जवाब देना चाहिए । लेकिन होता है क्या है ।
हम गुस्से से तडप उठते हैं और अपने उत्तर
में सहज व्यक्ति के प्रति भी कठोर हो
जाते हैं । हम सहज क्यों नहीं हो पाते हैं । शायद हमने सोचा ही नहीं ।
कारण क्योंकि हम में ध्यान की कमी है ।
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