Sunday, September 5, 2010

आदमी का मन बहुत ही डावांडोल होता है जो कुछ न कुछ हरकत करता रहता है । भले ही वह हरकत कितनी घटिया क्‍यों न हो । यदि आदमी पहले से ही परेशान हो तो दूसरे के प्रति मन में बहुत ही घटिया विचार आते हैं । पहली बात तो यह है कि दुख हमेशा नहीं बना रहता है और न ही सुख । हम किसी के जीवन में कोई खास परिवर्तन नहीं ला सकते हैं । व्‍यक्ति के बीच आधारिक परिवर्तन व्‍यक्ति खुद ही लाता है । आदमी के विचार इतने तेजी से चलते हैं कि उनको समझना बेबुझ बन जाता है । मौन के क्षणों में हम अपने वास्‍तविक विचारों को देख सकते हैं, तभी हमारे बीच सही तस्‍वीर सामने आ सकती है । हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि दूसरा दुख देता है या दूसरा सुख देता है । दूसरा तो मात्र साधन है । दूसरा तो मात्र बाधा उत्‍पन्‍न कर सकता है, लेकिन दुख नहीं दे सकता । किसी पर आरोप लगाना बेकार है । अपने बीच सहजता पैदा करनी चाहिए । उत्‍तेजना को कम करके रचनात्‍मक बनना होगा । अपने बीच गम्‍भीरता लाने से ही करुपता खत्‍म होती है । मुझसे लोग कहते हैं यह सब आसान नहीं । प्रेक्टिकल जीवन में यह नहीं होता । हां, मैं भी मानता हूं । मुश्किल है । लेकिन असम्‍भव नहीं । कोई भी नया काम शुरु में मुश्किल लगता है लेकिन धीरे धीरे अभ्‍यास करने पर आसन लगना शुरु होता है । एक उदाहरण से समझाता हूं । मान लीजिए आप कार सीखना चाहते है। शुरु में कार चलाना बहुत ही मुश्किल लगता है । लेकिन 15 दिन के अभ्‍यास के बाद आप समझ सकते हैं कि कार चलाना मुश्किल नहीं । ठीक वैसे ही जीवन के सत्‍यों को जानने में शुरु में कठिनाई आती है । लेकिन बार बार अभ्‍यास करने पर अवश्‍य सफलता मिलती है । और यदि सफलता न मिली तो भी कोई असंतोष न रखें ।

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