साहित्य ऐसा पढना चाहिए जो अपनी भावनाओं के अनुरुप हो । यह ठीक है कि हमें कई बार वह भी पढना होता है जो हमारी रुचि का विषय नहीं है लेकिन इतना तो हो सकता है कि हम उस साहित्य को ज्यादा पढें जो एक मानसिक संतोष प्रदान करता है । बच्चों का साहित्य पढेंगे तो हृदय की भावनाएं चंचल व मासूम हो जाएंगी,मधुर हो सकती हैं । सोचने का तरीका साधारण एवं सुरुचिपूर्ण हो जायेगा । इसी प्रकार फ्ल्मि के बारे में पढों, कहानी पढो,चुटकुल पढो, रहस्य रोमांच पढो या अश्लील साहित्य, जल्दी ही अपने सोचने की शक्ति भी वैसी ही हो जाएगी ।
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