Thursday, September 9, 2010

कई बार हमारे सोचे हुए कुछ नहीं होता । तब हम अपने बीच एक असंतोष पाते हैं । असंतोष के वातावरण में नेगेटिव विचार सोचने लगते हैं जो ठीक नहीं कहा जा सकता । ओशो रजनीश ने एक प्रवचन मे कहा था – प्रेम में घृणा निहित है । यह वचन कहां तक सत्‍य है, इस पर विवाद हो सकता है । लेकिन घृणा, प्रेम, रुठना, मनाना, हंसना हंसाना यही तो जीवन है । सभी रस हों जीवन में । जीवन के नौ रस, तभी जीवन पूर्ण होता है ।

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