Sunday, September 5, 2010

वाद विवाद और तर्क करना कहां तक उचित है, कहना आसान न होगा । तर्क से एक पक्ष की हार होती है और एक पक्ष की जीत । लेकिन सत्‍य छुपा रहता है । किसी पर आरोप लगाते रहने से कभी भी संतोष नहीं मिल सकता । आरोप सुननेवाला बेवजह आरोप लगानेवाले व्‍यक्ति के प्रति कभी भी प्रेमपूर्ण नहीं हो पाता । जरा सोचिए । प्रेम में जितना लेने का भाव होता है, प्रेम का भाव उतना दूर होता जाता है । अभिनय करना या कृत्रिमता थोडे समय के लिए ही सुखदायी होती है । अपने स्‍वविवेक के अनुसार ही कार्य करना ठीक है ।

No comments:

Post a Comment