Monday, September 6, 2010

किसी गुरु की क्‍या प्रतिभा है, उनके बीच कितना गुरुत्‍व है, यह सब उनके शिष्‍यों के कारण ही निर्धारित होता है । यदि आप अपने गुरु को महान गुरु और महान दार्शनिक मानते हैं तो उसके पीछे आप की उन्‍हें समझने की क्षमता ही होती है जिसके फलस्‍वरुप वे लोकप्रिय गुरु माने जाते हैं । यह सुनने और पढने में भले ही आश्‍चर्यजनक लगे लेकिन है तथ्‍यपूर्ण । किसी को अच्‍छा मानना या बुरा मानना – निर्भर करता है कि हम उसे किस दृष्टि से देखते हैं । यदि आप मुझसे घृणा करते हैं और मुझे बुरा व्‍यक्ति कहते हैं तो यह सिर्फ आपके सोचने पर निर्भर करता है । यदि आप मुझसे प्रेम करते हैं तो वह आपकी समझ का ही परिणाम होगा । साफ है कि किसी को अच्‍छा या बुरा कहने का निर्णय हमारे स्‍वविवेक पर ही निर्भर करता है । यदि यह सब हमारे स्‍वविवेक पर ही निर्भर है तो सिदध होता है कि सर्वश्रेष्‍ठ हम ही हैं । हमारी श्रेष्‍ठता ही सिदध करती है कि हमें उनको कितना सम्‍मान दें । अर्थात किसी को पहचानने की श्रेष्‍ठता हमारे बीच ही है । आपका गुरु आपके लिए महान हो सकता है, शायद मेरे लिए नहीं । मेरे गुरु मेरे लिए सर्वश्रेष्‍ठ हो सकते हैं शायद आपके लिए नहीं । तब हम कैसे श्रेष्‍ठता को साबित करते हैं ? शायद आपको इस प्रश्‍न का उत्‍तर मिल गया होगा । जब संसार की प्रत्‍येक वस्‍तु को देखने का नजरिया हमारे स्‍वविवेक पर है तो किसी बाहरी शक्ति से हम कैसे प्रभावित हो सकते हैं ? यदि हमें जानना है तो दूसरों को जानने की बजाए स्‍वयं को जानना चाहिए । यदि यह कहा जाए कि हम ही वह मिरर्र हैं, वह आइना हमारे बीच में ही है जो लोगों की अच्‍छी या बुरी तस्‍वीर पेश करता है अर्थात अन्तिम फैसला हमारे भीतर का आइना यानि स्‍वविवेक करता है । हमने अपनी ऊर्जा को जो बाहर की ओर लगा रखा है, क्‍यों न उसे भीतर की ओर रुपांतरित कर दिया जाए ताकि हम अपनी शक्तियों को पहचान सकें । अपने स्‍वविवेक को पहचानें जिसमें ब्रहमांण है । इन पंक्तियों को लिखने के पीछे मेरा यह उददेश्‍य नहीं है कि आप अपने गुरु का सम्‍मान न करें । यदि आपको अपने गुरु को सुनना अच्‍छा लगता है, तो अवश्‍य सुनें । यदि सुनने की भावना है तो सुनना ही चाहिए । सुनना चाहे भिखारी का हो या किसी गुरु का । किसी को भी सुनो, लेकिन अन्तिम सुनना तो हमारा ही होगा । अन्तिम सुनना तो अपने को सुनना ही होगा । बाकी सब व्‍यर्थ साबित होंगे । किसी के बीच भी सत्‍य दिख सकता है । सब अवतार और स‍ब गुरु अपनी जगह ठीक हैं । शायद वे भी यही कहना चाहते हैं कि जो तुम सोचते हो, वही परम सत्‍य है ।

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