Saturday, June 26, 2010

दूसरों पर बहुत ज्‍यादा निर्भरता छोडनी चाहिए । जितनी ज्‍यादा निर्भरता होती है उतना ज्‍यादा दुख होता है । तनाव के बढने का एक कारण यह भी है कि हम अपने बीच कभी भी एक संतोष नहीं पैदा होने देते हैं । अपने शरीर और दिमाग से हमेशा पूरे समय तक काम लेते रहते हैं । शरीर को तो थोडा बहुत आराम रात को सोकर मिल ही जाता है लेकिन दिमाग का चलना तो 24 घंटे चलता रहता है और उस चलने के दौर में हम भी मन के तल पर जीकर चलते हैं । मन तो चचंल होता है, फ्री डॉग, परेशान करता है, दुख देता है् तनाव देता है । कभी दिमाग में अच्‍छा और कभी बुरा अर्थ देते रहते हैं । आज किसी को अगर कहा जाए कि तुम एक घटा मौन रहो, अपने शरीर को मत हिलाओ, न खांसी करो, आंखे बंद कर लो और अपने मन को देखो ।चलते, दौडते,भागते मन को, विचारो को देखो, कैसे कैसे विचार चल रहे हैं, चले जा रहे हैं । एक विचार आता है, पिर दूसरा,तीसरा हजारो ।लेकिन यह असंम्‍भव सा लगता है । जब हम अपने दिमाग को आराम नहीं देते तो चैन कैसे आएगा । यह तो ऐसे ही है कोई एक मशीन को 24 घंटे लगातार चलाया जाए । अगर एक मशीन लगातार चलती रहे तो वह गर्म हो जाती है, जब तक गर्म है तो भी चल सकता है, लेकिन एक ऐसी स्‍टेज भी आती है जब उस गर्म मशीन खराब हो जाती है । ठीक इसी प्रकार इंसान के साथ भी है । जब इंसान को गुस्‍सा आने लगे तो समझो मशीन गर्म हो गई है और तनाव में घिरने लगो तो समझो मशीन से धुआं निकल रहा है, अगर तब भी मस्तिष्‍क को आराम न दिया तो वही हालत हो सकती है जेसे हम मशीन के टूटने या खराब होने की आशंका पर ।

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