Sunday, June 6, 2010

जितना हमारा वेतन है, उसमें हमारा गुजारा हो सकता है । बस अपने भागते मन को समझाना होगा । उसे रोकना होगा । उन चीजों के लिए जो हमारे लिए बहुत जरूरी नहीं हैं । एक एक रूपया खोजपूर्ण अर्थात सोच समझकर खर्च करना चाहिए और इसके साथ ही ज्‍यादा कमाई के एिल कोशिश आरम्‍भ कर देनी चाहिए । हम देखते हैं कि हमारे ज्‍यादातर खर्चे गैरजरूरी होते हैं । वास्‍तविक खुशी तो अपने अन्‍दर है । बाहरी सामान खरीदने से या बाहर का बहुत कुछ खा लेने से खुशी नहीं मिलती । खुशी की शुरूआत अपने अन्‍दर से ही शुरू होती है और खुशी की समाप्ति भी अपने से ही होती है । बाहरी कारण तो क्षणिक हैं ।

No comments:

Post a Comment