Thursday, June 17, 2010

जब आदमी खुद ही परेशान होता है तब उसे सब कुछ बुरा लगता है, सभी बुरे लगते हैं, वे भी जिन्‍हें थोडी देर पहले ही अच्‍छा कहा गया था यह सब अपने अंसतोष का ही परिणाम है और असंतोष के आलम में जो भी निर्णय लिया जाता है वह स्‍वयं के लिए दुखदायक तो होता ही है दूसरे को भी कभी कभी परेशान कर देता है और यह सब असंतोष आता है अपने अंहकार की वजह से । आदमी इस बात का अंह भी करता है कि उसके बीच कोई अवगुण या कमी नहीं है , कोई बुराई नहीं है । अंहकारी व्‍यक्ति ही कहता है कि दूसरे लोग अंहकार करते है । यह सब बकवास बन्‍द होनी चाहिए । कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता है, व्‍यक्ति अपने लिए ही कुछ कर ले यही काफी है । जब व्‍यक्ति अपने लिए कुछ करने लगता है तो उसे दूसरों की आवश्‍यकता नहीं होती और तब उसे दूसरों से प्रेम मिलता है । आवश्‍यकता है हम अपने असंतोष को पहचानें । दूसरों को दोष देना छोडे, और केवल मौन में जीएं । बोलते बोलते भी मौन में रहा जा सकता है ।लेकिन दूसरे में अविश्‍वास का अर्थ ही है कि हम अपने में विश्‍वास नहीं रखते । व्‍यक्ति केवल अपना प्रतिबिंब देखतो है ।

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