हम अपने जीवनकाल में जो भी काम करते हैं उनका शीघ्र प्रभाव हमारे ऊपर पडता है । हमारे अनुभव खुशी से भरे भी हो सकते हैं और गम से भरे भी । यदि हम प्रसन्न हैं, अपने जीवन में एक संतोष की झलक पाते हैं, हमें ऐसा प्रतीत होता है जीवन सत्य,शिव सुन्दर है तब हम कह सकते हैं कि हम समय का सदुपयोग कर रहे हैं । यदि हम बडे बडे पद पा भी लें और खूब मान सम्मान भी हो लेकिन हम अपने अन्दर से संतोष का अनुभव न करें, हृदय में एक तृष्णा हो तो हम कह सकते हैं हम समय का सदुपयोग नहीं कर रहे हैं ।
दूसरे क्या सोचते हैं और कैसा सोचते हैं, यह सोचना उनका काम है । कोई तुम्हें छोटा समझे या बडा । क्या फर्क पडता है । विरोध पैदा ही न करो । कोई भगवान कहे तो कहो मुझे तो ज्ञान नहीं, यह सोचना तुम्हारा काम है । कोई शैतान कहे तो कहा मुझे तो ज्ञान नहीं, यह सोचना तुम्हारा है । वह मत समझ लो जो दूसरा कोई कहें । भगवान जो करता है अच्छा करता है । हर काम में कहीं न कहीं अच्छाई होती है ।
हमारी अंतर्रात्मा बता देती है कि क्या ठीक है और क्या गलत । हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ।
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