इच्छा चाहे पत्नी की हो या पति की, मांबाप की हो या भाई बहन की या मित्र बंधु की, पूरी न होने की दशा में पीडा होती है। दूसरों की बात तो दूर खुद व्यक्ति अपने बीच कई इच्छाएं पैदा कर लेता है और बात में जब कपूरी नहीं हो पाती तो दुखी होता है । यह इच्छा ही तो है कि हम सोचते हैं कि हमसे हर कोई अच्छा बोले, कोई घटिया बात न करे । यदि ऐसा न हो तो दुख होता है । जो है उसे स्वीकार कर लें अथवा अपने को बदल लें, दूसरे को बदलता आसान नहीं ।
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