Saturday, June 26, 2010

तनावग्रस्‍त व्‍यक्ति दूसरों की भावनाओं का बिल्‍कुल भी ख्‍याल नहीं रखता है । किस बात से दुख पहुंचता है और किससे सुख, वह बेखबर रहता है । सिर्फ ध्‍यान की रास्‍त है । ध्‍यान के लाभ बहुत हैं जैसे शरीर,मन और आत्‍मा बलवान बने, जैसा चाहो वैसा बनो, आंतरिक व बाहरी संतोष का आरम्‍भ होता है और दुखों में कमी होती है । समझ् का विकास होता है और समस्‍याओं का हल भी होता है और यदि मेडिटेशन नहीं किया तो जीवन में उदासी और कमजोरी बढती है, व्‍यक्ति वास्‍तविकताओं से दूर होता है । एकाग्रता की कमी है ज्‍यादातर सभी व्‍यक्तियों में । तभी तो व्‍यक्ति दुखी है । बिना ध्‍यान के मूड खराब रहता है, सब कुछ बेकार सा लगता है । व्‍यक्ति चाहता है कि दूसरा बार बार प्रेरणा दे । ध्‍यान हो सकता है, शुरु में कम लेकिन बाद में धीरे धीरे बढ सकता है । संकल्‍प और प्रयास तो करना ही होगा । शुरु में सफलता नहीं मिलेगी, लेकिन पुन- शुरु करना चाहिए । ध्‍यान होगा तो सभी छोटी छोटी इच्‍छाएं पूर्ण होंगी जैसे पढाई,कम बोलना, संतोष, खानपान पर नियंत्रण । क्‍या तुम्‍हें भी लगता है कि सर्वप्रथम ध्‍यान अपने पर देना चाहिए ? पहले अपने को कोमल फूल सा बनाना होगा तभी तो दूसरे तुम्‍हारी खूशबू सुंघकर तुम्‍हारे पास आयेंगे । अपने से जुडना है तो मौन में होने का प्रयास करें । बोलो कम सुनो ज्‍यादा । मौन में ही हम सत्‍य को जान सकते हैं ।

अपने बीच एक अलग व्‍य‍क्तित्‍व रखना बेहद आवश्‍यक है, जो किसी की नकल न हो । जो काम आज तक नहीं हुआ है, वह अब हो सकता है । सफलता पाओ, चाहे अपने तरीके से ही । कहा जाता है कि बहसबाजी से दूर रहना ही बेहतर होता है । बात को संक्षेप में कहना अथवा कम बोलना ठीक होता है । जिन्‍दगी में सुख पाना है तो आलस छोडना होगा । अपनी इच्‍छाशक्ति को मजबूत बनाना चाहिए । शरीर को स्‍वस्‍थ रखना और बलवान बनाना जरुरी है । कठिन परिश्रम करने की आदत तो डालनी ही होगी, वरना सफलता से काफी दूर रहोगे । प्रतिदिन एक्‍सरसाइज अथवा योगा के लिए थोडा टाइम निकला जा सकता है । हां, खाने पीने की चीजों के बारे में सर्तकता बेहद जरुरी है । फालतू लोगों की सहमतियां छोड देनी चाहिए । उनकी बातों को सुनें जरुर लेकिन ध्‍यान नहीं देना चाहिए । उनकी निन्‍दा अथवा प्रशंसा की परवाह नहीं करनी चाहिए । बिना मांगे न तो सलाह लेनी चाहिए और न ही देनी चाहिए । बहुत से लोग बिना मांगे अपनी सलाह देने को आतुर रहते हैं, चाहे वह जानकार हो या नहीं । अपने विचार से काम लेना चाहिए । दूसरों के भरोसे रहना ठीक नहीं । दृढ इच्‍छाशक्ति वाला व्‍यक्ति बुरे मौसम का रोना नहीं रोता और न ही बुरे दिनों की कहानियां सुनाता है । अपनी चिन्‍ता को बढा चौडा कर कहना मूर्खता है ।
नेगेटिव विचार हमारी उपयोगी शक्ति को समाप्‍त कर देते हैं ङ

अपने अंर्तमन से बात करनी चाहिए । अपनी कमजोरियों, गल्तियों और भूलों को जानने का प्रयास करना चाहिए । अगर हम यह सोंचे कि यदि अन्‍य लोग उन्‍नति कर गए तो हम क्‍यों नहीं कर सकते, तो जीवन में उत्‍साह का संचार हो सकता है । प्रयत्‍न और परिणाम लगातार होने जरुरी हैं ।
यदि हमारा यह विचार है कि भविष्‍य में मैं हमेशा प्रसन्‍न रहूंगा और दूसरों को भी प्रसन्‍न रखूंगा तो जिन्‍दगी का रुप ही बदल जाता है । यह कोई बहुत कठिन कार्य नहीं है ।
केवल इच्‍छा करने से कुछ नहीं होता । रात को सोते समय अपने विचारों को देखना चाहिए । एक बात और, यदि हम रात को ही निश्‍चय कर लें कि मुझे सुबह 5 बजे उठना है, हम देखेंगे कि सुबह 5 बजे उठ जाते हैं । श्रेष्‍ठ व्‍यक्तियों के जीवन में क्‍या क्‍या है, देखना चाहिए । आदते एक दिन में न बनती हैं और न ही एक दिन में बदली जा सकती है, आदतें धीरे धीरे बनायी जाती हैं और आदते धीरे धीरे बदली भी जा सकती हैं । जीवन में असफलता भी मिलती है । असफलता के कारण खोजने चाहिएं यह देखना चाहिए कि मैंने अपनी एकाग्रता को किन्‍हीं कारणों से कम तो नहीं कर लिया ? जीवन में परेशानियों का सामना सभी को करना पडता है चाहे वह राम हो या नेपोलियन या शिवाजी । यदि जीवन का एक ढंग अनुकूल नहीं है तो उसे बदलने में कुछ भी बुरा नहीं है । अपनी सूझबुझ्‍ से अस्थिर दशा को बदला जा सकता है । यदि हम दूसरों का उत्‍साह बढाते हैं तो अपना उत्‍साह स्‍वयं ही बढता जाता है ।
एक निश्चित समय पर पहुंचकर कार्य आरम्‍भ कर देना शुभ लक्षण है । किसी भी कार्य को नियमित रुप से करने के लिए ठीक समय पर पहुंचकर कार्य शुरु कर देना चाहिए, मूड अपने आप ठीक हो जाता है । कार्य करते समय भूल हो सकती है, ज्‍यादा देर तक पछतावा करना ठीक नहीं । छोटे छोटे विरोधों को वंश में कर लेने से आत्‍मविश्‍वास जागृत होता है ।
शायद यह बात सच न लगे परन्‍तु एक शराबी के सामने भी एक आदर्श रहता है । सख्‍त से सख्‍त सर्दी हो या रात का भयानक सन्‍नाट कोई भी कारण उसे उसके निश्‍चय से पीछे नहीं हटा सकता । स्‍पष्‍ट है कि उसकी दृढशक्ति मजबूत है । अपना फैसला स्‍वयं करना चाहिए, निर्णय किसी दूसरे पर नहीं सौंपना चाहिए । दूसरों की सुनते रहे तो कहीं के भी न रहोगे । जो अच्‍छा लगता है, वहीं करना चाहिए ।

कई बार हम फालतू की फारमेलिटी में अपना बहुत सा समय और रुपया नष्‍ट कर डालते हैं । कहीं दूसरे को बुरा तो नहीं लग करहा, ऐसा अच्‍छा नहीं लगेगा, लोग क्‍या कहेंगे – कितनी झूठी और बेकार शान है । झूठी शान को ही अपना असली धन समझे बैठे हैं । दिल में कुछ और बाहर कुछ ।
इसके साथ ही यह लिखना भी जरुरी है कि सेविंग की भावना परम आवश्‍यक है । कुछ न कुछ बचत करते ही रखना चाहिए । सेविंग की भावना अच्‍छे भविष्‍य के लिए बहुत जरुरी है । क्‍या हम अपना अच्‍छा भविष्‍य नहीं चाहते ?
अच्‍छा होगा यदि हम अपने गुप्‍त राज किसी से भी न कहें । इससे दूसरा हमारी कमजोरी को पहचान लेता है और उसका गलत फायदा भी उठा सकता है । अपने बारे में कम से कम बोलना चाहिए और यह तभी हो सकता है जब हमारी नैचर में यह होगा और हमारी सुनने की आदत भी हो । जीवन को स्‍वीकार भाव से जीने से संतोष का भाव उत्‍पन्‍न होने लगता है । जीवन में सुख दुख तो आते ही रहते हैं । होना तो यह चाहिए कि मैं ऐसा चाहता हूं और ऐसा ही है, मैं ऐसा ही चाहता था यानि दुख में भी जीत और सुख में भी जीत । अपनी बुराई को दुखना भी बहुत बडी बात है और उसके प्रति जागरुक होना उससे भी बडी बात है । जीवन में संतोष हो, इसके लिए आवश्‍यक है कि जीवन के प्रति आशापूर्ण दृष्टिकोण हो ।

नए सिरे से सोचना होगा । पुराना तरीका छोडना होगा । हम देखते हैं कि हमारा आत्‍मविश्‍वास कभी कभी इतना बढ जाता है कि लगता है हम सब कुछ कर सकते हैं । हमारी जो महत्‍वाकाक्षाएं हैं वह सब पूरी हो सकती है । लेकिन कभी कभी जीवन एक बोझ् लगता है, आत्‍मविश्‍वास गिर जाता है । दरअसल वह आत्‍मविश्‍वास नहीं है । आत्‍मविश्‍वास गिरने वाली चीज नहीं होती है । वह आत्‍मविश्‍वास नहीं कुछ और है जो बार बार गिर जाता है । शायद वह मन है ।
हम बहुत सी बाते करते है।, मुझे बहुत पढना है्, लेकिन पढने में मन नहीं लगता । मुझे कम बोलना है लेकिन ज्‍यादा बोल जाते हैं । वास्‍तव में हमारे बीच इच्‍छाशक्ति की कमी है जो हमें वह नहीं करने देती जो हम करना चाहते हैं । यदि हम वास्‍तव में जो करना चाहते हैं वह कर लेते है। बाकी सब बहाने हैं । हमारा मुंह और हमारे बस में नहीं ? ज्‍यादा बोल जाते हैं । प्रत्‍येक गलती के लिए जिम्‍मेदार व्‍यक्ति स्‍वयं होता है । देखना होगा कि हमारे रास्‍ते में रुकावट डालने वाले कौन कौन से तत्‍व है ? उन पर विचार करना चाहिए ।
समय बहुत कीमती है । समय का सही इस्‍तेमाल करना चाहिए । दैनिक कार्यों को इस प्रकार टाइम टेबल बनाकर करें कि ऐसा न लगे कि आज भी समय बर्बाद कर दिया ।

हमें जीवन के सभी रंगो से परिचित होना चाहिए । जिस प्रकार एक अभिनेता अभिनय कर वैसा ही पात्र बन जाता है जो उसे करना है, उसी प्रकार हमें भी जीवन में अभिनय करना चाहिए । वह पात्र चाहे पुत्र को हो या प्रेमी का, मित्र का हो या सामान्‍य व्‍यक्ति का ।लेकिन इतना जरुर है कि अभिनय वास्‍तविक हो । उस पात्र में इस प्रकार खो जाएं मानो सत्‍य हो । बनावटी जीवन जीने में नुकसान ज्‍यादा है । अच्‍छा होगा यदि सादा और सादा जीवन जीने की भावना हो । स्‍पष्‍ट हो चुका है कि कम बोलना और केवल सुनने पर ध्‍यान देना ठीक है । लोगों के प्रति अनावश्‍यक आकर्षण भी ठीक नहीं है । अपनी इच्‍छाओं को सीमित दायरे में रखना ही बेहतर है । इ च्‍छाओं का क्‍या है जितना बढाना चाहोगे, बढती जाएंगी । तब तक नहीं रुकेगीं जब तक हम नहीं चाहेंगे । इच्‍छाओं पर नियंत्रण रखो और देखेंगे कि चित भी शांत रहेगा और हम प्रसन्‍न भी ।
सम्‍भव है कि हमें सफलता नहीं मिल रही है । बार बार उपेक्षा का शिकार होना पड रहा है । परेशान रहते हैं हम । लेकिन इस मुश्किल दौर में घबराना नहीं चाहिए । अपने टारगेट पर निगाह रखें, जल्‍दी ही सफलता के द्वार खुलेगें । असफलता पर निराश होना मूर्खता ही तो है ।
कुछ बाते जिन पर ध्‍यान रखना सुन्‍दर होगा - दूसरों के प्रति पाजिटिव भावना रखें । लोकप्रियता की सोच मन से जितनी जल्‍दी निकाल दो अच्‍छा है । अंहकार का त्‍याग आज ही कर दो । गुस्‍सा न करे तो बेहतर । जैसा कोई सामनेवाला पेश आए, वैसा ही पेश आएं । विचार केवल मांगने पर ही दें । भला किया, भूल जाओ । आलोचना एक सीमा तक ही अपना कर्तव्‍य समझकर । कहीं आलोचना बुराई न बन जाए ।
हर दुख का कारण हमारी चिन्‍ता है । और चिन्‍ता एक ऐसी बीमारी है जिसे मनुष्‍य स्‍वयं ही पैदा करता है । चिन्‍ता करने से सभी काम खराब होते हैं । अपना दुख सभी से न कहें । सुख है या दुख अपने तक ही सीमित रखना चाहिए । जहां तक हो सके दूसरों का उत्‍साह बढाना चाहिए, उनकी तारीफ करना ही अच्‍छा है । बात करते समय चेहरा मुस्‍कुराता हुआ होना चाहिए । कोशिश करें हमेशा चुस्‍त और तरो ताजा रहें ।
यदि हम पाजिटिव सोचते हैं तो सभी काम पूरे होते हैं । काम करने में जी लगता है, दूसरों को भी अच्‍छा लगता है । जो काम भी करना है, खुशी खुशी करना ही ठीक है । नेगेटिव विचार आते हैं तो उन्‍हें किसी के सामने शो नहीं करना चाहिए । याद रखें जब हम स्‍वयं ही अपने को असफल कहेंगे तो हमें कौन सफल कहेगा ?

इस संसार में बहुंत से लोग पैदा होते हैं, वे इस तरह जीते हैं उनपर विचार करने पर केवल दुख ही होता है । ब‍च्‍चे पैदा करते करते, रो रोकर जीकर, कोल्‍हू के बैल की तरह जीकर मर जाते हैं और छोड जाते हैं अपने पीछे एक गला सडा परिवार जो गरीबी और दरिद्रता के चुंगल में फंसा रहता है । लेकिन हमें निश्‍चय करना होगा कि हम कुछ अलग तरीके से जीने का प्रयास करेंगे । हम साधारण नहीं विशेष बनेंगे । हम कुछ करके दिखाएंगे ।
किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता प्राप्‍त करने के लिए एकजुट होकर मेहनत करना आवश्‍यक है । यदि दो तीन वर्ष लगातार मेहनत की जाए तो इच्छित एग्‍जाम में सफलता मिलना मुश्किल नहीं । किसी भी काम में सफलता पानी है तो उस कार्य में खो जाएं । उस काम के बारे में नेगेटिव विचार भुल जाएं । यदि उस विशेष काम में कोई नुक्‍ताचीनी की अथवा नेगेटिव विचार सोचे तो समझ् लीजिए, हमने उस कार्य को पूर्ण करने की आधी शक्ति खो दी है ।

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