Saturday, June 26, 2010

तनाव में हम लोग कितना सोच बैठते हैं और हमें ऐसा लगता है कि हम किसी भी प्रकार से सुखी नहीं रह सकते । हम सोचते हैं कि मां बाप अपनी बात मनवाना चाहते हैं और पत्‍नी अपनी । बाद में बच्‍चे अपनी बात मनवाना चाहते हैं । हर पत्‍नी चाहती है कि उसका पति उसकी इच्‍छाओं के अनुसार काम करे और पति चाहता है कि पत्‍नी उसके अनुसार सोचे, उसकी किसी भी बात का विरोध न करें । यह इच्‍छा सभी में होती है लेकिन मां बाप और पत्‍नी या पति में कुछ ज्‍यादा ही । पति भी कई बार सिनेमा की दुनिया में खोकर आदर्श पत्‍नी की खोज करने लगता है ।
हम क्‍यों भूल जाते हैं कि कोई किसी को पूरी तरह से खुश नहीं रख सकता, दूसरे को संतुष्‍ट नहीं कर सकता है । न पति, न पत्‍नी, न मां बाप – कोई भी किसी को संतोष नहीं दे सकता । तनाव में घिर जाने से और उससे निकलने का एक स्‍टीक रास्‍ता यही है कि हम आराम करें । अपने शरीर को पूरी तरह ढीला छोडकर लेट जाएं और जो हमसे नाराज होता है, गुस्‍सा करता है या जली कटी सुनाता है, उसको सुने, केवल सुने और अनदेखा कर दें ।

ज्‍यादातर लोगों में विचारों का द्वंद्व चलता रहता है और वह भी निरन्‍तर । कभी कभी विचारों की धक्‍कम धकका इतनी होती है कि एकदम घबराहट पैदा होने लगती है । कभी बीते हुए समय को याद करते हुए, कभी आज को याद करते हुए और कभी भविष्‍य की कल्‍पनाओं को लेकर । हालांकि वक्‍त विचारों की तेजी को कम कर देता है लेकिन विचार तो चलते ही रहते हैं ।विचार तो नेगेटिव भी चलते हैं और पाजिटिव भी । अगर हम उन चलते हुए विचारों को लिखना शरु कर दें तो हम देखेंगे कि ऐसा धाराप्रवाह कचरा बह रहा है जिसे देखकर स्‍वयं ही दुख होगा । यह दुख कई बार समय बीतने पर दिखता है । कई बार तो अपने पर विचार करते करते दिमाग घूम जाता है । एक ही व्‍यक्ति के प्रति कभी उत्‍साह पैदा हो जाता है तो कभी उसी व्‍यक्ति के प्रति निराशा । माता पिता के प्रति, भाई बहन के प्रति, पति पत्‍नी के बीच और मि’त्रों के बीच कभी कभी इतना द्वंद्व छा जाता है कि सभी एक दूसरे को काटने को दौडते हैं, एक दूसरे के प्रति आरोप लगाते है और भला बुरा कहते हैं लेकिन जल्‍दी ही वही सब एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते है और हंसने गाने लगते हैं । अजीब हैं हम लोग । लिखी गई पंक्तियों से एक बात तो स्‍पष्‍ट है कि जितनी धारणा रखी जाएगी, पूरी न होने पर कष्‍ट होगा । ऐसा लगता है कोई भी आदमी न बुरा होता है और न अच्‍छा । दोनों होता है अच्‍छा भी और बुरा भी या यूं कह लीजिए न अच्‍छा होता है और न बुरा, यह सब तो अपने देखने का नजरिया है या यूं कह लीजिए वक्‍त वक्‍त की बात है । अपने मन में किसी के प्रति गुस्‍सा है तो उसके प्रति नफरत पैदा होपने लगती है चाहे कुछ ही देर पहले उसके प्रति प्रेमपूर्वक बने हुए थे । लगता है यह क्रम तो चलता ही रहेगा ।


शादी से पहले और शादी के बाद आदमी के जीवन में बहुत बडा परिवर्तन आ जाता है । शादी से पहले लडका लडकी सपनों की दुनिया में होते हैं और बाद में उन सपनों से जागता है । शादी के बाद बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पडता है, कई तनावों से गुजरता पडता है जिसका पहले से अहसास नहीं होता । कभी कभी तो ऐसा लगता है मानो विवाह करके बहुत बडी गलती कर दी है ।
विवाह से पूर्व एक परिवार में बैठे सभी परिवारजन मिलजुलकर खाना खा रहे हैं, एक साथ खेल रहे हैं, हंसी मजाक कर रहे हैं । घर में कमाने वाला मुख्‍य सदस्‍य पिता है और घर में काम करने के लिए मां । पिता अपने बच्‍चों को प्‍यार करता है, पढाता है, लिखाता है । मां तरह तरह के खाने बनाकर फरमाईश पूरी करती है । गलती करने पर मां अपने बच्‍चे को डांटती भी है । धीरे धीरे वह परिवार फलता फूलता है । छोटा मकान बडा मकान बनता है, छोटे बच्‍चे बडे हो जाते हैं और मां बाप बूढे । बडे होकर बच्‍चे भी काम धंधे या नौकरी पर लगते हैं‍ । घर की आय बढ जाती है और सुख सुविधाएं भी । सब मिलजुलकर खर्चा चलाते हैं । पिर बच्‍चों की शादी की बात की जाती है । लडकी की शादी हुई तो वह दूसरे घर चली जाती है और लडकों की शादी हुई तो बहूएं घर में आने लगती हैं । चारों ओर चहल पहल होती है जो ज्‍यादा देर तक नहीं रहती । खुशी का वातावरण धीरे धीरे फीकी खुशी का रुप लेने लगता है पिर फीकी खुशियां उदासी का रुप ले लेती हैं और उदासी का वातावरण धीरे धीरे तनाव का रुप लेने लगता है और तनाव का रुप बिखराव का रुप धारण करने लगता है । सभी अपने को समझदार समझने लगते हैं और अपनी प्रमुखता चाहते हैं लेकिन सभी ऐसा चाहेंगे तो यह कैसे संम्‍भव है, अतत परिवार टूटने लगता है और और परिवार टूट जाता है ।

क्‍या कारण हैं, परिवार टूटने के । क्‍यों टूट जाता है यह भरा भरा परिवार – शादी के बाद क्‍यों नहीं एक हो पाता । क्‍या विवाह एक जहर है जो परिवार को बिखराव की ओर ले जाता है । क्‍या शादी के परिणामस्‍वरुंप ही खुशियों का वातावरण बैचेनी, असंतोष,अविश्‍वास और तनाव में बदलने लगता है । क्‍या विवाह के बाद बच्‍चे बदल जाते हैं । क्‍या घर का माहौल बहूओं के आने के कारण खराब होता है । क्‍या बच्‍चों के विवाह के बाद मां बाप बदल जाते हैं । विवाह के बाद रिश्‍तो की डोर कमजोर क्‍यों हो जाती है । क्‍या विवाह के बाद ही समस्‍याएं आती हैं जिनका कोई समाधान नहीं निकलता । यह तमाम सवाल है जिनका आज तक किसी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया है । लेकिन इतना सच है कि तनाव का वह वातावरण अवश्‍य छा जाता है जो विवाह के पूर्व नहीं था । मैने इस मामले में काफी गहराई से सोचने का प्रयास ।किया है । मैंने पाया है कि यह तनाव का वातावरण प्राय’ सभी घरों में बन ही जाता है । कारण अलग अलग हो सकते हैं, कोई भी स्थिति परिस्थिति हो सकती है और यह तनाव जरुरी नहीं है कि शादी के तुरन्‍त बाद साफ प्रकट होता हो । धीरे धीरे भी हो सकता है । लेकिन तनाव का प्रकट होना धीरे धीरे स्‍पष्‍ट होने लगता है । उस खुशी के वातावरण से लेकर उस तनाव के वातावरण के बीच की दूरी को एक शब्‍द में बताया जाए तो यही कहा जा सकता है कि वह यात्रा है अंहकार की । इस अंहकार की यात्रा में परिवार के सदस्‍यों के अपने अपने अंहकार टकराते हैं, रोजाना टकराते हैं और जोर जोर से टकराते हैं जिनका परिणाम है तनाव एवं विखराव । मजेदार बात तो यह है कि कोई भी नहीं चाहता कि परिवार में तनाव हो, बिखराव हो, सब चाहते हैं कि घर में शांति हो। चूंकि यह बिखराव व तनाव बच्‍चों के विवाह के बाद स्‍पष्‍ट होता है लेकिन दोष थोप दिया जाता है घर की बहू पर । चूंकि घर में पहले के सदस्‍यों को बोलने की पूरी आजादी होती है और नई बहू को कम,इसलिए घर के पहले वाले सदस्‍य अपनी बात मनवाने के लिए जोर देते हैं । दूसरी ओर बहू भी एकदम से दूसरे घर को अपना घर नहीं समझ्‍ती है, वह चाहकर भी अपने को अजनबी सा महसूस करती है । अपनी परेशानियों को खुलकर नहीं कह पाती । यदि वह बोलती भी है तो बहुत ही धीमा जो दूसरों को सुनाई नहीं देता और यदि बहू जोर से प्रभावशाली तरीके से अपनी बात कहती है तो उसकी बात का विरोध किया जाता है । ऐसे में नई बहू दो रास्‍ते अपनाती है – उस तनाव और अंहकार की जंग में खप जाना अथवा प्रेमपूर्वक रहकर सही समय का इंतजार करना । अक्‍सर घर की नई बहू पहला तरीका ही अपनाती है और वह भी बडी चतुरता के साथ । अपने पति के कंधों पर बंदूक रखकर अहंकार की जंग में शामिल हो जाती है । झूठ सच, कर्तव्‍य और हर प्रकार के ताम झाम तरीकों से वह घर में अपना स्‍थान उंचा बनाने का प्रयास करती है । इस तनाव और अंहकार की लडाई में अंत नहीं होता सिर्फ एक समझौता होता है और उस समझौते के अनुसार एक पक्ष को वह घर छोडकर जाना होता है । तब लडाई बन्‍द होती है । यह लडाई विवाह के बाद आरम्‍भ होकर समझौते पर जाकर खत्‍म होती है, यह समझौता कब होगा जो निर्भर करता है मां बाप पर या नवविवाहित जोडे पर ।

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