Saturday, June 26, 2010

इच्‍छा चाहे पत्‍नी की हो या पति की, मांबाप की हो या भाई बहन की या मित्र बंधु की, पूरी न होने की दशा में पीडा होती है। दूसरों की बात तो दूर खुद व्‍यक्ति अपने बीच कई इच्‍छाएं पैदा कर लेता है और बात में जब कपूरी नहीं हो पाती तो दुखी होता है । यह इच्‍छा ही तो है कि हम सोचते हैं कि हमसे हर कोई अच्‍छा बोले, कोई घटिया बात न करे । यदि ऐसा न हो तो दुख होता है । जो है उसे स्‍वीकार कर लें अथवा अपने को बदल लें, दूसरे को बदलता आसान नहीं ।



आजकल जो विवाह होते है उनमें ज्‍यादातर दिखावा और ऊची ऊची बातें की जाती हैं। लेकिन जब सच्‍चाई सामने आती है तो सपनों को महल टूट जाता है । विवाह के 6 महीने बाद ही जो पति पत्‍नी अपनी अपनी कमियों को बहुत ही खूबी के साथ छिपाते हैं, खुलकर सामने आने लगती हैं और प्रेम का नशा जल्‍दी ही उतर जाता है । तब दोनों एक दूसरे को ताना देते हैं । जहां प्रेम की कसमें खायी गई थीं, वहां जहर वाली बातें कर करके जीवन को नर्क बना लिया जाता है और ऐसे में पति भी और पत्‍नी भी कहते हैं विवाह से पहले सब ठीक था । नहीं, यह सब विवाह के बाद प्रकट हो जाता है, इसलिए विवाह गलत कहा जाता है । विवाह गलत नहीं होता, व्‍यक्ति गलत होता है । यह आरोपों प्रत्‍यारोपों का शीत युद्व तब तक चलता रहता है जब तक दूसरे से सुख की इच्‍छा करते रहेंगे । दूसरे से केवल प्रेम,सुख की कल्‍पना एक भूल है, अपने को अंधेरे में रखने जैसा, यानि एक मूर्खता ।



हम क्‍या कर रहे हैं ? यानि हमारी क्‍या क्षमताएं है । सुबह से रात तक लगभग 18 घंटे होते हैं हमारे पास । इस दौरान हम अपनी शक्ति को कहां कहां लगाते हैं, इसपर विचार करना होगा । ध्‍यान से देखने पर पता चलता है कि हम अपना ज्‍यादातर समय यूहीं बेकार में नष्‍ट कर देते हैं जिसका कोई ठोस आधार नहीं होता । ज्‍यादातर लोग बिना टाइम टेबल बनाकर अपना जीवन व्‍यतीत कर देते हैं ।

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