अंहकार क्या है ? सीधे सीधे शब्दों में इसका अर्थ है तू गलत, मैं ठीक । बस यही एक सूत्र है । जिसने इस सूत्र को अपना लिया समझ लो उसने अंहकार की लडाई में तनाव की लडाई में, बिखराव की लडाई में अपनी कमर कस ली है । यह एक ऐसा सूत्र है जिसे अपनाकर कोई भी तनावमुक्त नहीं हो सकता । यदि इस सूत्र को न अपनाया जाए और यह सूत्र अपनाया जाए कि वह ठीक हो सकता है ? शायद मैं गलत हूं – थोडा इंतजार करते हैं, सही समय का इंतजार करते हैं । लेकिन यह सूत्र हम नहीं अपनाते हैं । घर का कोई भी सदस्य नहीं अपनाता है । किसी भी घर के परिवार में कोई भी अपने को नहीं बदलता, सोचते हैं दूसरा बदल जाए । सभी अंहकार की लडाई लडते हैं ।
लडाई का एक दूसरा कारण है रुढिवादिता और आधुनिकता का भ्रम । इस विषय में भी कोई ठीक सी बात, स्थिति स्पष्अ नहीं हो पाती । इसका प्रारम्भिक रुप विवाह से पहले वह परिवार और सदस्य देख लेते हैं लेकिन विवाह के बाद सभी अपने अधिकारों की मांग तो करते हैं लेकिन कर्तव्य का पालन नहीं करना चाहते । कौन ठीक है और कौन गलत, इस बात का फैसला हो ही नहीं पाता । सभी अपने अपने तर्क प्रस्तुत करते हैं । तीसरा कारण भी है जो आर्थिक है । अपने कमाए हुए पैसे को हर व्यक्ति अपनी मर्जी से खर्च करना चाहता है । घर के बजट में वह अपना शेयर कम से कम देना चाहता है । इस सोच का ही परिणाम है कि सभी चेहरों पर अविश्वास के बादल छाने लगते हैं । अविश्वास के मंडराते बादल एक दिन खुलकर बरसने लगते हैं । इस प्रकार परिवार का आर्थिक अभाव भी लडाई झगडे और तनाव का कारण बनता है । ज्यादा इच्छाएं और कम आय । बस, यही कारण है कि अंसंतोष बढता है । इस प्रकार अंहकार ही वह अवगुण है और समपर्ण ही वह गुण है जिससे परिवार टूटता है अथवा बनता है । चूंकि समपर्ण भाव तो लुप्त होता जा रहा है, इसलिए तनाव बनता जा रहा है ।
इस प्रकार इतना तो स्पष्ट हो चुका है कि जेसे जैसे उस परिवार में एक दूसरे के बीच अपने अपने अधिकारों और कर्तव्यों के नाम पर झगडा होता है, तनाव बढ जाता है और बच्चों के विवाह के बाद या नई बहू के घर में आने से तनाव और ज्यादा स्पष्ट और खुलकर सामने आ जाता है ।
अब प्रश्न उठता है कि इस तनाव से कैसे मुक्त हुआ जाए ? ऐसा क्या क्या किया जाए जिससे तनाव का रुप विकराल न हो और जहां तक सम्भव हो समय मिलजुलकर खुशियों सहित बीते ? एक, हम धीरज से काम लें । कोई भी समस्या सामनेआए, उस पर खुलकर और ठंडे दिमाग से विचार करें और विचार ऐसा करें कि समस्या का हल पाजिटिव हो । एक पक्का निश्चय करना होगा कि मुझे हरसमभव प्रयत्न से समस्या का हल पाजिटिव ही निकालना है । इस प्रकार यदि हम सोच लें तो वहीं हो जाता है जैसा हम सोचते हैं ।
दूसरा, जब सामनेवाला गरम हो तो खुद ठंडे हो जाओ, यानि चुप हो जाएं । किसी भी बात को न कहें जब तक कि प्रश्न न पूछा जाए । बिना मांगे सलाह न देते रहें । यदि झूठे आरोप भी लगें तो शांत मन से सुनते रहे और एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दें । देखा जाता है कि कई बार एक आदमी को बहुत गुस्सा आ जाता है तो वह खूब चिल्लाता है और झूठे आरोप भी लगाता है ।
यदि खुद चुप हो जाएं तो दूसरे का गुस्सा जल्दी की शांत हो जाता है और अगर हमने उसके गुस्से में बोलना आरम्भ कर दिया तो उसे हमारा बोलना आग में घी के बराबर लगेगा । इसलिए मैने इस बात को बहुत ही व्यावहारिक देखा है कि एक आदमी की बात को हम ध्यानपूर्वक सुनते रहें और किसी प्रकार का विरोध न प्रकट करें तो वह जल्दी ही अपने को शर्मिदा महसूस करने लगता है और यदि उसके गुस्सा करने के बाद हम थोडा सा मुस्करा दें तो वह बहुत ही छोटा हो जाता है और हम बडे ।
तीसरे, जहां विवाद हो, दीर्घकालीन विवाद हो तो आपस में मिलकर बात स्पष्ट कर लेना ज्यादा ठीक रहता है । सभी अपनी स्पष्ट स्पष्ट राय बता दें और जो उचित हो , जो समाधान हो, वही करें । मान लीजिए घर में नवविवाहित दम्पत्ति को लेकर झगडा होता है तो बात को स्पष्ट करते हुए जरुरत है कि कोई विद्वेष या गिलेशिकवे की नौबत आए अथवा परिवारजनों के बीच अविश्वास की दीवार खडी होनी शुरु हो जाए उससे पहले ही अलग हो जाना चाहिए ताकि बाद में मधुर संबंध भी बने रहें । इधर नवदम्पत्ति को दी एक चैलेंज मिलेगा कि कैसे चलाते हैं घर और घर के खर्चे । क्या क्या कर्तव्य हैं और क्या क्या अधिकार । इस बारे में मेरी पक्की राय है कि मांबाप से झगडा हो या अविश्वास, उससे पहले ही राजीनामे से अलग अलग हो जाना चाहिए । बाद में संबंध सामान्य हो जाते हैं ।
चौथे, ज्यादा से ज्यादा देने की भावना होनी चाहिए । देने पर ही बहुत कुछ मिलता है । चालाक होने पर इतना कम लाभ मिलता है कि अपार लाभ से व्यक्ति वंचित हो जाता है । जीवन को स्वीकार भाव से जीने से ही जीवन के प्रति संतोष उत्पन्न हो सकता है । पांचवे, अपने को हमेशा रचनात्मक कार्यो में व्यस्त रखना चाहिए । कोई भी काम करो । पढने का, लिखने का, पेंटिंग में, सिलाई बुनाई में, बागवानी में, खेल, झाडू बरतन, समाज सेवा कुछ भी ताकि वह सभी कार्य रचनात्मक बनकर नम्रता जैसा गुण पा सकें । धर्म में रुचि लेकर भी ईश्वर में विश्वास रखा जा सकता है ताकि सदमार्ग प्राप्त हो । छठे, यह सोचना होगा कि जीवन में सुख दुख तो एक सच्चाइ्र है । कल सुख था तो अब बारी है दुख की । यदि अब बारी है दुख की तो जल्दी ही सुख आनेवाला है । यह भावना ही दुख को बहुत कम कर देती है, झगडे को कम कर देती है । यदि यह सोचें कि झगडे तो हर घर में होते हैं मेरे घर में हो रहे हैं, कोई नई बात नहीं । झगडे शुरु होते हैं बाद में खत्म भी हो जाते हैं, सम्भव है यह सोच भी तनाव कम कर दे । अब मैं इस समस्या के दूसरे पहलू पर आता हूं । मान लिया जाए कि नवदम्पत्ति ने अपने बीच एकता का परिचय देकर परिवार से अलग रहने की सोच ली है और रहने भी लगे तो यह समझना भंयकर भूल होगी कि अब वह अंहकार की लडाई होगी ।होगी और जरुर होगी । अब उसका रुप बदला हुआ होगा । अब वह लडाई दो जनों के बीच होगी । कभी सिददांतों को लेकर, अपनी बात को जोर देकर, रुठकर, आर्थिक रुप से , ऐसी ऐसी समस्याएं आएंगी जिनपर तनावग्रस्त होना स्वाभाविक ही । एक ही रास्ता है, उन सभी सूत्रों को अपने जीवन में उतार ले जिनका जिक्र किया है, तनाव कम हो सकता है ।
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