अपनी बात को संक्षेप में कहना ही बेहतर ।
आपत्ति में आदमी स्वयं को और दूसरों को पहचान लेता है । पालने से लेकर कब्र तक ज्ञान प्राप्त करते रहो । असंतोष पराजय का दूसरा नाम ही तो है । दूसरों में दोष ढूढंना भी एक दोष है । बडा बनने के लिए लगन और मेहनत भी जरूरी है । आदमी चाहे तो अपने भीतर समूल परिवर्तन ला सकता है । जैसा सोचोगे, वैसा ही होगा । दुनिया तो कुछ न कुछ कहती ही रहती है ज्यादा परवाह न करों ।
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