मैंने पढा है कि घर को चलाने में स्त्री का योगदान इतना महान है कि परिवार की गाडी को चलाने में उसकी भूमिका सर्वश्रेष्ठ है । यदि स्त्री सहनशीलता खो दे तो वह परिवार टूट जाता है । शायद ईश्वर ने उसे यह शक्ति दी है । पुरुष के बीच तो सहजता बहुत ही कम दिखती है । कुछ समय तक ही सहजता को सम्भाल पाता है । शायद आप भी मानते होंगे । घर का स्वामी यानि पति में सहजता इतनी नहीं होती कि वह परिस्थितियों का डट कर सामना कर सके । पति बाहर की समस्याओं का हल तो कर लेता है लेकिन घर की समस्याओं को वह ठीक से हल नहीं कर पाता है । यह जिम्मेदारी स्त्री ही अपने कंधों पर लेती है । लेकिन प्रश्न है कि कभी कभी वह स्त्री क्यों अपनी सहनशीलता खो देती है । सहनशीलता को ईश्वर का दिया हुआ महान गुण है । इससे विदा होना मात्र मूर्खता है, अपने धर्म से विमुख होना है । ****
मुलाकातें और बढते दिव्य स्वप्न एक अनोखा कौतूहल प्रस्तुत करते हैं । वायदे एक आश्वासन देते हैं और आश्वासन आशा का मंत्र । आशा पूर्ण होने पर सुख की अनुभूति होती है और अपूर्णता की दशा में दुख । यहीं से जीवन के दोनों रुपों को जाना और पहचाना जाता है ।
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----- उसमें साहस है और कुछ करने की कल्पना भरी भावना भी । वह निडर होकर चलती है और उसे आत्मविश्वास प्राप्त है । मैंने सुना है ऐसे आत्मविश्वासी लोग भले ही तकलीफ दें, परेशानी दें लेकिन विजय ऐसे लोगों की ही होती है । मैंने सुना है जिन्दगी जिदा दिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं । मूर्दा दिल समाज की नजरों में तो सफल हो सकते हैं लेकिन वास्तव में वे असफल होते हैं । जो जिन्दा दिल जीते हैं उन पर कई कठिनाईयां आती हैं । यह तो साफ है । ऐसे क्षणों में जरुरत है अपनी शक्तियों को बिखरने न दिया जाए और एकजुट होकर काम किया जाए । अपने उददेश्यों की प्राप्ति के लिए एक दूसरे में पूर्ण विश्वास रखा जाए ।
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भावनाओं और प्रेम का उत्तर प्रेम ही तो होता है । कई बार लगता है क्या जीवन केवल प्रेम ही नहीं हो सकता ? जहां कोई नफरत का भाव न हो, कहीं कोई उत्पात न हो । हो सकता है । यह सम्भव है कि हम केवल प्रेम करें । यह तभी हो सकता है जब हम बुदिध के तल पर सोचना छोडें । यह हो सकता है यदि हम एक दूसरे के लिए जिएं । ईश्वर का साया उन्हीं लोगों पर छाया रहता है जो जीवन को प्रेम मानते हैं और सभी से प्रेमपूर्ण होते हैं । मैंने सुना है प्रेम में आदमी आदमी नहीं परम आत्मा हो जाता है ?
कई बार आपको लगता होगा कि आप जीवन के बारे में कुछ ज्यादा ही सोचते हैं । बातें तो करते हैं कि केवल आज के बारे में ही सोचो, भविष्य की सोच बेकार है, लेकिन आप देखते हैं कि कभी कभी आप ही भविष्य की कल्पनाओं में उलझ जाते हैं । यह कोई ठीक बात नहीं है । एक आधारभूत आत्मविश्वास की कमी है, यह उसका अप्रत्यक्ष रुप है । कभी कभी तो आपका आत्मविश्वास इतना डांवाडोल हो जाता होगा कि स्वयं ही आत्मविश्लेषण करने लगते होगे कि क्यों टूट जाता है मेरा विश्वास । कुछ करने की भावना, कुछ पाने की भावना आकर क्यों चली जाती है ? हां, एक बेसिक समझ की बात आपमें जरुर है, वह सभी में होती है । बस जरुरत है उसको समझने की । आपमें और मुझमें हर विषय पर विचार क्षमता रखते हैं ।
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जीवन के कई रुप हैं और ज्यादातर बनावटी । कभी कभी ऐसे नकली, झूठे, दिखावटी और बनावटी रुप को देखकर बेहद अफसोस होता होगा और आप विरोध भी करते होंगे । लेकिन अपने बीच निराशा पाते ही ऐसे बनावटी समाज को स्वीकार करना मजबूरी बन जाती है । बेमन से । कभी कभी यह बनावटीपन अच्छा भी लगता है । सोचते होंगे यदि बनावटीपन में में आत्मसंतुष्टि मिले, खुद को भी और दूसरों को भी तो इसमें बुरा क्या है ? जैसे दुनिया जी रही है, वैसे ही हम जिए जाएं ? हमेशा भविष्य की सुरक्षा की कल्पना से भयभीत होकर ।
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कह दो जो कहना है सुना दो जो सुनाना है सुन लूंगा आज मैं तुम्हारी नजर की जुबा अगर कोई शिकवा है कोई शिकायत है तो आज कह दो सुन लूंगा तुम्हें मौन में
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किसी का ठीक से पेश न आना, एकदम मौन हो जाना, किसी प्रियजन के आंसू हों या किसी दूसरे के दिल में एक पीडा उत्पन्न करने लगते हैं । हम विचलित हो उठते हैं ।
सिनेमा परदे पर मार्मिक सीन देकर आंसू निकल आते हैं । दूसरे का दर्द अपनी आंखों से देखकर अपना समझ लेते हैं । कोई उखडा उखडा सा पेश आता है तो विचलित हो उठते हैं हम । तनाव से ग्रस्त हो उठते हैं, दुख से भर जाते हैं । सब कुछ काटने को दौडता है । चारों ओर निराशा ही दिखती है । अपने को अकेला पाते हैं । प्रश्न उठता है – जीवन का मकसद क्या है ? शायद जीवन का मकसद ढूंढना ही जीवन का मकसद है ।
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अपनी निज सरलता की भावना, त्याग की सोच जीत लेती है बाजी । प्रेम की राह में सब भूला दिया जाता है । देकर ही सब मिल जाता है । शब्द मिट जाते हैं, नजर की जुबा बोलती है ।
सोचता हूं कुछ सोचना है न सोचता हूं
न सोचा है पता नहीं क्या सोचना है एक पीडा है बिलखती तडपती यही सोच सोच कर सोचता हूं कुछ सोचना अर्थहीन है यही सोच सोचने को मजबूर करती है कहीं तुम गलत तो नहीं ?
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