Monday, August 2, 2010

क्‍या आप अपनी कमियां सुनकर दूसरों की प्रशसा या सम्‍मान करने का साहस रखते हैं ?

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प्रत्‍येक आदमी में अच्‍छे गुण और अच्‍छी भावना भी होती है । तभी तो जीवन में अच्‍छे पल बीतते हैं । बदलाव भी आता है । अच्‍छे पल बुरे पलों में बदलते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अब अच्‍छे पल आयेंगे ही नहीं ।
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आप देखेंगे कि जब भी आप अपनी छोटी सी दुनिया में मस्‍त चाल से रहेंगे तो आपको किसी प्रकार की पीडा या दुख नहीं होगा । आप अपने बीच पूर्णता का अनुभव कर सकेंगे । लेकिन आपकी परेशानी तब अवश्‍य ही बढ जाती होगी जब आप संसार की दौड को देखकर भागने लगते हैं । तब आपको लगेगा मानो आप दौड में पीछे ही रह गये हैं । सफलता और सुखी जीवन के प्रयास तो सभी करते हैं, आप भी करते होंगे, लेकिन अंधी दौड ? आपकी दौड दो तरह की हो सकती है । एक, अच्‍छी से अच्‍छी नौकरी या काम धन्‍धा मिल जाए, ज्‍यादा से ज्‍यादा पैसे मिल जाएं । दूसरा, मेरा सम्‍मान हो, इज्‍जत हो अर्थात पैसा और शोहरत सभी को चाहिए । यह दौड अंतहीन है । कितना ही दौड लो, मंजिल नहीं है । तब प्रश्‍न उठता है जिस दौड की कोई मंजिल नहीं है, अंत नहीं है तब वह दौड क्‍यों ? क्‍यों अपने को कष्‍टों और दुखों में डाला जाता है ? और और ----- और ।
इसका यह अर्थ नहीं है कि आगे नहीं बढना चाहिए । जहां हो वहीं रुक जाओ । नहीं । अपनी गति से बढो, अपनी शक्ति के अनुसार बढो । जहां कोई थकावट या तनाव न हो । दूसरों को देखकर नहीं अपने को देखकर आगे बढो । यदि हम अपनी शक्तियों को पहचानने लग जाएं तो हमें जरा भी कष्‍ट नहीं होता ।
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तब आप बहुत खुश होते हैं जब लोग आपको चाहते हैं । आपको प्‍यार करते हैं । कमियां तो आपके बीच में भी हैं जिन्‍हें आप दूर करना चाहते हैं । यह कमियां तभी दूर होंगी जब आप अपने बीच गुणों को बढा लेंगे । दूसरों की रफतार तेज है, आपकी अपनी रफतार से । आप पीछे रह जाते हैं और अपने को बीमार समझने लगते हैं । दो ही बात है दूसरा तेज है या आप धीमा हैं । इसको ध्‍यान से देखना है ।
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अक्‍सर आपने देखा होगा कि दूसरों के डायरी लिखने का अन्‍दाज निराशापूर्ण अथवा रहस्‍यपूर्ण होता है । डायरी में वे लागे समाज के प्रति अपना रोष प्रकट करते हैं और प्रेम की पूजा करते हैं । वास्‍तविकता की दुनिया से दूर, अपने भीतरी व्‍यक्त्वि से, एक कल्‍पना की दुनिया में खो जाने में उन्‍हें एक विशेष आनन्‍द का अहसास होता है । इसको ही वे डायरी लिखना समझते हैं । किन्‍तु वक्‍त के एक झोंके के साथ ही कल्‍पनाओं का महल टूटता है और पाते हैं चारों ओर सुनसान रेगिस्‍तान । अपने को अकेला महसूस करते हैं । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डायरी लिखने का अर्थ समझते हैं अपनी प्रेमिका या प्रेमी के साथ बीते क्षणों का व्‍याख्‍यान । अपने प्रियतम के बीच अंलकारों और उपमाओं का एक अन्‍तहीन सिलसिला । टूट जाता है यह सब पत्‍तों के महल की तरह । जिन्‍दगी की कुछ ऐसी वास्‍तविकताएं भी होती हैं जो डायरी के पन्‍नों में नहीं आती । कुछ ऐसे सवाल जिन पर समय पर विचार नहीं होता । तब, देर हो जाती है और डायरी के अंतिम पन्‍नों में दुखद यादों का एक धाराप्रवाह वर्णन शुरु हो जाता है ।

मैं समझता हूं डायरी लिखना मतलब अपने भावों को, विचारों को जैसा सोचा,समझा, जाना बस लिख डालो ।जब पीडा हो तब भी लिखो और जब खुशी हो तब भी लिखो, बिना सोचे समझे कि क्‍या लिखा जा रहा है । मेरा अपना विचार है कि वह अच्‍छा लेखक नहीं है जो सजाकर संवारकर लिखता है । बस,लिखा । लेखक का अर्थ है लिखनेवाला । बिना किसी पक्षपात के, बिना किसी धारणा के । पढनेवाला सिर्फ पढता रह जाए और पढता ही जाए ।
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कोई किसी को प्रभावित नहीं कर सकता । हां, एक रास्‍ता है – दबाव का । शक्ति से दूसरे को अपना प्रभाव दिखाएं । हो सकता है कि इस विधि से दूसरा अंधेरे में भटकने से रुक जाए लेकिन इससे दूसरे का व्‍यक्त्वि शून्‍य हो जाएगा । तब वह भयभीत हो जाता है । गलती तो कोई भी कर सकता है । हर कोई गलती करता है । तुम उसे सुधार नहीं सकते । वह खुद सुधरेगा । तुम्‍हें तो केवल सुन सकता है । तुम तो केवल संकेत मात्र हो सकते हो । दूसरा रुके या न रुके, यह उसका फैसला है । जब एक अंधेरे से भटक जाए तभी उसे प्रकाश का आभास होगा । तुम प्रकाश देना ।

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