Thursday, August 19, 2010

आप यदि किसी से प्रेम नहीं कर सकते तो उससे घृणा भी मत करना । हां, इगनोर कर देना, अनदेखा कर देना । उसकी उपेक्षा करना शुरु कर देना, दूसरा स्‍वयं समझ जाएगा कि उसने कहां गलती की है । लेकिन बदले की भावना या बदले की कार्यवाही करके सत्‍यानाश करनेवाली बात होगी । फ्‍रि यह मत सोचना कि मेरे जीवन में कोई कांटे उगा गया । खुद उगाताहै इंसन अपनी जिन्‍दगी में कांटे । कोई किसी की समस्‍या को हल नहीं कर सकता, आदमी अपनी समस्‍या स्‍वयं ही हल करता है । समस्‍यांए तो हर व्‍यक्ति के जीवन में आती हैं लेकिन दूसरा तो केवल समस्‍या को सुन सकता है और अपना सुझाव दे सकता है, वास्‍तविक हल तो आदमी खुद ही करता है । अगर कोई दूसरे के कहने पर वैसा ही करे तो इस संसार में इतनी अशांति न फैलती । उचित रास्‍ता यही है कि आदमी अपने बीच सम्‍पूर्णता का विकास करे । दूसरे को अपना सहयोगी माने, अपना अंग नहीं ।

चारों ओर अशांति और तनाव देखकर कई बार दिल बहुत ही दुखी हो जाता है । घर घर में तनाव, झगडे और परेशानी देखकर ऐसा लगता है कहीं ये तनाव हमें कहां ले जा रहा है । जीवन का सही अर्थों में क्‍या मायने हैं ? हर इंसान जैसे अपने आप से डरा हुआ है । मां बाप को चिन्‍ता रहती है कि मेरे बच्‍चे बिगड रहे हैं और देश् को चिन्‍ता है कि उसके नागरिक पथभ्रष्‍ट हो रह हैं । *****
एक जने की कमाई से घर के खर्च नहीं चल सकते । यदि घर के खर्च पूरे न हों तो सैंकडों झगडे और कलह के कारण बन जाते हैं । यदि आवश्‍यक साधन हों तो झगडे कम होते हैं । कम पैसों से जिन्‍दगी को ठीक से जीया नहीं जा सकता, सिर्फ खींचा जा सकता है, गुजारा किया जा सकता है । वैसे कोई यह नहीं चाहेगा कि उसकी पत्‍नी घर से बाहर जाकर नौकरी करे और परेशानियां उठाए । यदि दोनों मिलजुलकर काम करें तो सम्‍भव है कि जीवन की गाडी ठीकठाक चले । इस प्रकार बहुत से प्रश्‍न है जीवन में, जिनका सामना करना पडता है । बहुत उलझन होती है, तब पता चलता है कि आदमी में कितनी सहजता है । अच्‍छे दिनों में तो हर कोई सहजता, सहनशीलता की बातें कर सकता है । कई बार मन में आता है ये हमारे साधु संत जो उपदेश देते हैं, गृहस्‍थ जीवन जीकर, काम धंधा नौकरी करे उपदेश देवें तो जाने ?

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