गिरे, उठे, गिरे, फ्रि उठे – शायद यही है जीवन का आधारभूत सत्य । बार बार गिरते हैं हम, मन के भटकाव की वजह से । मन, बुदिध और अंहकार इन तीनों तत्वों के मिश्रण से ही तो हम भटकते हैं । बस घबराना नहीं, गिरे, फ्रि उठ जाएं । गिरने से सबक लेकर शायद हमारा गिरना रुक जाए और हम मंजिल को पा लें ।
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