Tuesday, August 10, 2010

देखा जाता है कि बहू नये घर में आते ही अपने को बंधन में महसूस करती है । उसे बार बार लगता है कि यह मेरा घर नहीं है । उसे अपने मां बाप का घर ही अपना घर लगता है । ऐसे में यदि नए घर में जब तक हंसी खुशी का माहौल रहता है, वह खुश रहती है और जब थोडा सा किसी गलती पर डांट दिया जाता है तो उसकी सहनशीलता का दिवाला निकल जाता है । वह गुस्‍से में आ जाती है और घर में बवाल खडा कर देती है । न ठीक से बात करना, न खाना पीना, न हंसना हंसाना, वह जैसे घर में अपनी प्रधानता स्‍थापित करना चाहती है । वह भूल जाती है कि मेरे मां बाप भी तो मुझे डांटते थे, इन्‍होंने डांट दिया तो क्‍या हुआ । मेरी नई बहू स्‍वीकार नहीं कर पाती । यहीं से शुरु होता है पारिवारिक झगडा । पत्‍नी छोटी छोटी बात को पति के सामने नमक मिर्च लगाकर करती है, पति पहले तो अनदेखा करता है और झगडों पर समझ के लिए प्रेरित करता है । यदि लडके ने मां बाप का पक्ष लिया तो कहानी और भी बिगड जाती है । तब बहू कहती है अत्‍याचार हो रहा है, मैं दहेज कम लायी, दहेज की मांग की जा रही है, ये मुझे मार डालेंगे । हजारो शिकायतें । वह बहू जब मायके जाती है तो खूब बढा चढाकर कर अपना छोटा सा दुख अपने मां बाप को लम्‍बा चौडा करके बताती है । लडकी के मां बाप भी अपनी बेटी को सिखाते पढाते हैं कि तुम्‍हें क्‍या करना चाहिए । यह बचकानापन है । तभी तो कहते हैं विवाह कोई गुडडे गुडडी का खेल नहीं है । एक जिम्‍मेवादी है । दो परिवारों की आपसी समझ या नासमझ का परिणाम भुगतना ही पडता है ।
इसलिए मेरा मानना है कि युवतियों को विवाह के लिए हां कहने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि वह किसी दूसरे माहौल में जा रही है जहां अपने को एडजस्‍ट करना जरुरी है भले ही उसे अपनी मजबूरी मान ले । अपने व्‍यक्त्वि में कुछ ऐसे गुण लाने होंगे जो उसके अपने पक्ष में जाते हो । उसे नये माहौल में ढलना ही होता है । उसे नये घर की परम्‍पराओं को सहज स्‍वीकार करना ही होता है । ये है समाज के नियम, समाज की व्‍यवस्‍था, जो कटु हैं किन्‍तु सत्‍य हैं ।

2 comments:

  1. Ji, bikul sahi kaha aapne ki yuvatiyon ko haan kahne ke pahle soch lena chahiye, kyonki le-de kar saari jawabdaari unhi ki to hoti hai, uss ghar kee nahi jo uss ladki ko apne ghar bahu bana kar laa raha hai. Aur mai to kahti hu, aise ghar aur aise mahoul ke liye to saaf inkaar kar dena chahiye, jahan logon ko itani bhi samajh nahi ki ek ladki apne maa-baap, bhai-bahan,rishtedaaron se alag hokar, naye ghar, naye mahoul aur naye logon ke beech aa rahi hai. Kya hai na, ladke ko aur uske gharwaalon ko apne hi ghar mei rahna hai to unhe pata kaise chalega? Ho sakta hai ki uss ghar mei koi ladaki na ho, ya ho to uski shaadi hi na hui ho.
    Pradeep ji, I am really so sorry, but I don't agree with you at all, afterall, this is only single side of a coin.

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  2. thank you for comments. please read last line of this article again.
    please read my other articles in Anteryatra and comment.

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