Tuesday, August 31, 2010

कोई आपको अच्‍छा नहीं लगता है तो इसका यह अर्थ तो नहीं कि आप उसके खिलाफ बोलना शुरु कर दें । यदि वह बुरा है तो उसे बुरा ही रहने दें । यदि गलती कर रहा है तो उसको गलती करते ही रहने दें । आप क्‍यों परेशान होते हैं और बुरे बनते हैं । वह अपनी बुराई का परिणाम खुद ही भुगतेगा । आज नहीं तो कल । कोई हमें क्‍यों अच्‍छा नहीं लगता है ? यही न कि वह आपकी इच्‍छा और आशा के अनुरुप नहीं चल रहा है ? यदि वह तुम्‍हारी आशा के अनुरुप चल तो क्‍या आप उसे बुरा कहेंगे ? नहीं । तब तुम उसे बुरा नहीं कहोगे । किसी को अच्‍छा या बुरा तभी ठहराया जाता है जब व्‍यक्ति अपने को महत्‍व देना चाहता है । अपने को सही और दूसरे को गलत ठहराने की परम्‍परा तो लगभग सभी में होती है । हम हमेशा ही अपने को सही मानते हैं । यदि हमारे किसी से विचार नहीं मिलते तो हम दूसरे को दोषी मानते हैं । यह सोचना ठीक नहीं है । यह जरुरी नहीं है कि हमारा सोचा हुआ विचार सही हो । यह तो उसी तरह है जैसे हम सुख में खुशी में बहुत ही आसानी से घुलमिल जाते हैं और सफलता का श्रेय अपने को देते हैं लेकिन दुख के समय हम विचलित हो उठते हैं । दोष दूसरे के बीच ढूंढना आरम्‍भ कर देते हैं । दूसरा गलत है, इसलिए दुखी हैं ओर हमें भी दुख पहुंचा रहा है, यह सोच गलत है । आप गलती पर है । ऐसा विचार हमें संतोष नहीं दे सकता । सही गलत का फैसला दूसरों द्वारा करने के बाद हम भ्रम में आ जाते हैं । मैं अपने सुखों और दुखों के लिए स्‍वयं जिम्‍मेवार हूं, यही भावना में सही मायने में जीवन का सही रुप प्रकट करती है । यदि आप सुखी नहीं है, अपने बीच दुख या असंतोष महसूस करते हैं तो समझ लें कि आपके बीच कहीं न कहीं प्रेम की कमी है । प्रेमपूर्ण व्‍यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता । प्रेम में ही व्‍यक्ति दूसरों को सुख देता है । अत कभी भी अपने दुख के लिए किसी दूसरे को दोषी मत ठहराना । *****

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