Sunday, August 22, 2010

अगर तुम फूल जैसे कोमल व सुगंधित होते तो कैसे कोई तुम पर प्रहार करता ? पहले तुम खुद फूल बन जाओ, तभी दूसरे तुम्‍हारी सुगंध से खींचे चले आएंगे और तुम पर प्रहार करना बन्‍द कर देंगे ।


मौन में ही हम सत्‍य को जान सकते हैं । अपने भागते मन को शांत करना है । अपनी शक्तियों को बंटने न दो । अगर तुम्‍हारा दोष नहीं है तो भी स्‍वीकार कर लो , विवाद से दूर हो जाओगे, तुम हारकर भी जीत जाओगे । तुम किससे चुप रह सकते हो, तुम कितनी देर तक चुप रह सकते हो, वही तुम्‍हारी जीत का समय है ।
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जरुरी नहीं कि नैचर बनायी जाए । मेरी इमेज, मेरा नाम, मेरी इज्‍जत, मेरा प्रभाव, मेरी प्रसिदिध, मेरा रुतबा ये सब बेकार की बाते हैं । एक बंधी बंधाई परिपाटी पर चलना बेवकूफी है । जैसा समय, वैसी नैचर, वैसा व्‍यवहार । यानि आल राउन्‍डर ।
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