Sunday, August 8, 2010
इंसान अपनी एक अपेक्षा पूरी न होने से ही अपना रुख बदलने लगता है । मजेदार बात तो यह है कि इस प्रतिक्रिया पर भी एक क्रिया फ्रि से होगकी । वह यह है कि अगर आपने उससे अगले दिन मेरी किन्हीं एक दो बातों को मान लिया वैसा ही किया जैसे मैंने सोचा था, अपेक्षा की थी तो मेरे अन्दर एक क्रिया होगी और मैं अब कल की तरह रुखा रुखा व कटा कटा सा पेश नहीं आऊंगा । इस घटना कामहत्व कम होता होता एक दिन खत्म भी हो जाएगा । अर्थात, यह उसी प्रकार है जैसे हमें कहीं चोट लग जाती है या बुखार हो जाता है तो हम दवाई लेते हैं और चोट अथवा बुखार समाप्त हो जाता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे कई ऐसे विचार है जो समय के अनुसार बदलते रहते हैं । ज्यादातर विचार तो दूसरों के विचारों और कार्यों के आधार पर ही बदलते हैं । कोई हमारे प्रति अच्छा व्यवहार करता है तो हम भी उसके प्रति अच्छा व्यवहार करने लगते हैं और कोई बुरा व्यवहार करता है तो हम भी बुरा व्यवहार करने लग जाते हैं । हां, इस बारे में कुछ अपवाद भी मिल सकते हैं लेकिन यह वाद प्रतिवाद की स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रुकती है । एक दो बार चाहे न हो लेकिन इतना जरुर है कि जल्दी ही प्रतिक्रिया होगी । ठीक वैसे ही समझ सकते हैं कि पहले पानी गरम होता रहता है लेकिन जब 100 सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है तो तेजी से उबलना शुरु कर देता है । रहस्य की बात तो यह है कि मैंने बहुत ही करीब से देखा है कि लोगों का प्रेम भी विचारों के आधार पर चल रहा है । दो मित्रों का,दो भाईयों का, पति पत्नी का या और किसी का । अगर एक पक्ष दूसरे पक्ष के प्रति सम्मान की भावना रखता है तो दूसरा स्वयं ही सम्मान रखने की बजाए उत्तर में अपमान करता है तो सम्मान करने वाला और बहुत सी तारीफ करने वाला पक्ष बहुत ही तीव्र गति से उसका अपमान करना शुरु कर देता है जिसका थोडी देर पहले ही सम्मान कर रहा होता है । जैसे सम्मान नहीं हो, एक व्यापार हो, एक हाथ ले, एक हाथ दे । एक बात और देखी है । वह यह है कि ज्यादातर हम लोग ऊपर से कुछ विचार रखते हैं और भीतर कुछ और । वे विचार चाहे अपने प्रति हो या दूसरों के प्रति । दोहरे मापदण्ड के शिकार है हम लोग ।
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