Saturday, August 7, 2010

मुझसे पूछा गया है कि मैं सिगरेट पीता हूं और मैं सिगरेट छोडना चाहता हूं । कैसे छूट सकती है सिगरेट ? कैसे छूट सकती है यह बुरी आदत ? मैंने जवाब दिया – तुम्‍हारी यह भूल है । तुम सिगरेट को बुरा मानते ही नहीं हो्, तुम सिगरेट छोडना ही नहीं चाहते । तुम सिगरेट को बुरा मानते ही नहीं हो । सिर्फ तुमने सिुना है कि सिगरेट बुरी है । यदि तुम्‍हें पता होता कि सिगरेट पीना बुरा है तो तुम सिगरेट कदापि नहीं पीते । उसी वक्‍त छोड देते । शायद तुम्‍हें अभी पता ही नहीं है कि सिगरेट पीना बुरा है । दरअसल लोग दूसरों से सुनसुनकर अपना विचार बना लेते हैं और धारणाओं में बंध जाते हैं । यह कैसे हो सकता है कि किसी बुरी आदत को न छोडा जा सके । जरा गौर करना और ध्‍यान देना । कब तुम सिगरेट की तलब महसूस करते हो, कब तुम्‍हारे कदम सिगरेट की दुकान की तरफ बढते हैं, कब तुम्‍हारी जेब से पैसे निकलते हैं, कब तुम दुकानदार से सिगरेट की मांग करते हो ? कब वह दुकानदार तुम्‍हें सिगरेट पकडाता है, कब तुम सिगरेट को मुंह पर लगाते हो और कब तुम सिगरेट जलाते हो । तब देखना अपने को सिगरेट पीते हुए । लम्‍बे लम्‍बे कश । धूंए के बादल उड रहे हैं और कहां जाकर लुप्‍त हो जाते हैं । सब ध्‍यानपूर्वक देखना । तब उन विचारों को भी साथ्‍ं साथ्‍ं देखते रहना कि कौन कहता है कि सिगरेट बुरी है और उसे भी देखना जो सिगरेट खरीदता है और अपने मंह में लगाकर पीता है । क्‍या यह सिगरेट पीने वाला और सिगरेट को बुरा कहने वाले दो व्‍यक्ति हैं ? एक सिगरेट पीता है और दूसरा सिगरेट का विरोध करता है । पता चलेगा कि यह दो भी तुम ही हो । इसका अर्थ यह हुआ कि तुम एक नहीं हो, एक से अधिक हो । जब इतना पता चल जाए कि तुम एक नहीं बल्कि एक से ज्‍यादा हो तब अपने से प्रश्‍न पूछना – वास्‍तविक कौन है, सिगरेट पीनेवाला या सिगरेट का विरोध करने वाला ? जब इसका ठीक ठीक से पता कर लो तभी आगे की सोचना । कितनी अजीब बात है कि व्‍य‍क्ति स्‍वयं ही सिगरेट अपने पैसो की खरीदता है और स्‍वयं ही कहता है कि मैं सिगरेट छोडना चाहता हूं । क्‍या किसी ने जबरदस्‍ती सिगरेट जगाकर मुंह में डाली थी ? नहीं, आदमी खुद ही सिगरेट खरीदता है और खुद ही सिगरेट की आदत से दुखी होता है । मेरा वक्‍तव्‍य सुनकर वह निरुत्‍तर हो गया । जब मैंने उसे निरुत्‍तर देखा तो बोलना शुरु किया – क्‍या क्रोध करते हो ? उत्‍तर मिला – हां । मैंने पूछा 3 क्‍या चाय पीते हो ? उत्‍तर मिला – हां । मैंने पूछा शराब पीते हो ? उत्‍तर मिला – हां । मैंने पूछा चिढचढापन, ईष्‍या,द्वेष,चालाकी,भय,झूठ,आलोचना क्‍या यह सब करते हो ? थोडा सोचकर – हां, कभी कभी ये सब भी होता है । मैंने कहा – क्‍या फर्क पडताहै अगर तुम सिगरेट पीते हो । क्‍या है सिगरेट ? धूंए का अन्‍दर बाहर आना जाना । बस और कुछ नहीं । प्रश्‍न आया – सिगरेट पीने से गला खराब हो जाता है । मैंने कहा – गला खराब होता है या खांसी आती है तो इलाज कराओ । दवाई लो । ठीक हो जाओगे । तुम समझते हो क्‍या सिगरेट न पीने से गला ठीक रहेगा ? खांसी न होगी ? नहीं । जो लोग सिगरेट नहीं पीते हैं,उनको भी खांसी होती है, उनका भी तो गला खराब होता है । लडकियों को देखो उनके गले हमेशा खराब रहते हैं । क्‍या वे सिगरेट पीती है ? तो हो सकता है कि तुम चाट पकोडे खाते होगे, गोलगप्‍पे, समोसे, मसाले, तली हुई चीजे, खटाईवाली चीजे खाते होगे, उनसे गला भी खराब हो सकता है, सिगरेट छोड भी दोगे तो गला उनसे खराब होने लगेगा । क्‍या फर्क पडता है तुम्‍हारे सिगरेट छोडने से । पीओ, शान से पीओ । तुम्‍हें जरुर कोई न कोई आनन्‍द मिलता होगा, चाहे क्षणिक ही, लेकिन मिलता तो है । और यदि तुम यह कहो कि इससे मेरी मौत हो सकती है तो मैं यही कहूंगा – मौत तो एक निश्चित नियम है । वह जब होनी है, होगी । ऐसे हजारो लाखों लोग है जो सिगरेट नहीं पीते हैं लेकिन मरते हैं । लडकियों और औरतों को देखो, क्‍या वे नहीं मरती ? विवेकानन्‍द 39 वर्ष की आयु में ही मर गये । सिगरेट शराब नहीं पीते थे । और ऐसे हजारो लोग हैं जो सिगरेट पीते हैं लेकिन सौ बरस तक जीते हैं । इसलिए चिन्‍ता मत करो । सिगरेट से मौत न होगी । और क्‍या फर्क पडता है अगर पांच दस साल कम जी लिए । जहां 80 वर्ष की आयु तक जीना था वहां 70 साल तक जी लोगे । और अगर तुम उससे पहले मर भी गये तो किसी को क्‍या फर्क पडता है । यह संसार तो तुम्‍हारे बिना भी चलता रहेगा । और क्‍या देखा है तुमने जीवन में ? क्‍या सुख है इस जीवन में ? जरा गहराई से सोचो । क्‍या सुखी हो ? क्‍या खुश जीवन जी रहे हो ? इस जीवन की सार्थकता क्‍या है ? जो जीवन आनन्‍द नहीं दे सकता, केवल नफरत और पीडा देता है, उससे इतना मोह क्‍यों ? जितना जीओ शान से जीओ । सिगरेट पीने का दिल हो तो पी लेना और जब न पीने का हो तो न पीना । जिस दिन छोडने का दिल चाहे उस दिन छोड देना । और अगर तुम यह कहो कि मेरे सिगरेट पीने से मेरी पत्‍नी को दुख होता है तो मैं तुम्‍हें यहीं कहूंगा अपनी पत्‍नी से कहो – यदि मैं सिगरेट छोड दूं तो क्‍या तुम्‍हारे दुख दूर हो जाएंगे ? कदापि नहीं । दुख हमेशा लगे रहते हैं । एक दुख कम भी हो जाएगा तो क्‍या फर्क पडता है । और भी बहुत से गम हैं जमाने में । जिसने दुखी होना है वह तुम्‍हें सिगरेट पीते हुए भी दुखी रहेगा और जिसने खुश होना है वह तुम्‍हें सिगरेट पीते हुए भी खुश रह सकता है ।
खैर ऊपर दिया गया विवरण एक व्‍यंग्‍य था उन लोगों पर जो बोलते कुछ है, सोचते कुछ है और करते कुछ और ही हैं ।
कोई भी आदत एक दिन में न बनती है और न ही एक दिन में छूटती है । यह एक प्रोसेस है जो लगातर अभ्‍यास मांगता है । छोटे छोटे संकल्‍प लेकर हम अपनी अच्‍छी या बुरी आदते बना सकते हैं । आवश्‍यकता है एक विश्‍वास की । बार बार प्रयास करने से ही अपने उददेश्‍य को पाया जा सकता है । गिरना उठना फ्‍रि गिरना और फ्‍रि उठना, यह सोच एक दिन अवश्‍य सफलता दिलाती है । हां, आटो सजेशन यानि अपने को जानना और ध्‍यान के मार्ग से भी अपने उउदेश्‍य की प्राप्ति की जा सकती है ।

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