Monday, August 30, 2010
यह अजीब दास्तां है कि एक स्त्री जब मां बनती है तो वह अपने पुत्र से बेहद प्रेम करती है । नौ माह तक अपने गर्भ में रखकर अपना भोजन खिलाती है और तब मां का खून पुत्र का खून बन जाता है । मां अपने बच्चे को पालती पोसती है और उसके प्रति बंध जाती है । बच्चा बडा हो जाता है । मां का प्यार धीरे धीरे कम होता जाता है । बच्चा बडा हो ता है तो मां अपने बच्चे को डांटती भी है । पीटती भी है और प्यार भी करती है । बच्चे की बडी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी करती है । बच्चा धीरे धीरे बडा होता है तो वह अपने बच्चे से बहुत सी आशाएं रखती है । वह चाहती है कि उसे जो कहा जाए, वह वैसा ही करे । उसे जिस चीज से रोका जाए उसमें वह चीज में कोई रुचि न ले । लेकिन होता है विपरीत । जब तक बच्चा छोटा होता है वह अपनी मां का हर कहा मानता है । लेकिन जैसे जैसे उसकी बुदिध का विकास होता है, बच्चा अपनी समझ के मुताबिक काम करता है । तब स्थिति विडम्बनापूर्ण हो जाती है । मां अपने में पक्ष में और पुत्र अपने पक्ष में तर्क देते हैं । तब मां अपने बच्चे से नफरत करने लगती है । तब मां का नफरतभरा चेहरा देखकर बच्चा भी अपने बीच विवदास्पद स्थिति पाता है । वह मां का कहना मानना तो चाहता है किन्कतु अपनी समझ के मुताबिक भी चलना चाहता है । जब दोनों के विचार भिन्न होते हैं तो स्थिति बदतर होती जाती है । तब मां सोचती है – बेटा बदल गया है । बेटा भूल गया है मां के प्रति अपने फर्ज को । इधर बेटा सोचता है – मां बदल गई है । पहले कितना प्यार करती थी, कितना चाहती थी, अब इतनी नफरत । मां सोचती है बेटा बदल गया है । मां एक दोहरेपन के भाव में व्यवहार करती है, इधर बेटा भी । मां बेट की शादी भी करना चाहती है, लेकिन अपनी मर्जी के अनुसार । बेटा अपनी मर्जी चाहता है । पुन विचारों का तकराव । तत्पश्चात एक पक्ष बात को मान लेता है । पुत्र का विवाह हो जाता है । अब प्रेम की यात्रा आगे बढती है । पुत्र अपनी पत्नी से प्रेम करता है । मां इस सत्य को स्वीकार नहीं कर पाती । वह अपने भावों द्वारा बाधा उत्पन्न करती है । पत्नी यह सब स्वीकार नहीं कर पाती । फलत सास बहू में झगडा शुरु हो जाता है । ****
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