Sunday, August 22, 2010

हम ऐसे दोहरे मापदण्‍ड में जी रहे हैं जिसके कारण हमारा वास्‍तविक अस्तित्‍व ही खत्‍म होता जा रहा है । हम वास्‍तव में जो हैं और जो व्‍यक्त्वि दिखाते हैं उसमें बहुत अन्‍तर है । हम झूठ और बुराई के खिलाफ कदम उठाने से डरते हैं, हम एक बूढे की भांति कमजोर हो जाते हैं । आयु में अपने से बडे हों या निकट संबंधी, हम उनकी बात को असत्‍य नहीं कह पाते, गलत बात का विरोध नहीं कर पाते । हम पुरानी परम्‍पराओं पर किसी भी तरह का सन्‍देह नहीं खडा करते । बस उनको मानकर, सम्‍मोहित होकर माने चले जाते हैं ।

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