Monday, August 2, 2010

जो तुम चाहते हो वह तुम हो जाते हो तुम कितना श्रम उसमें डालते हो वह तुम पर निर्भर है ध्‍यान के माध्‍यम से यह सब घट जाता है
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पति पत्‍नी के बीच मनमुटाव का एक कारण सेक्‍स की इच्‍छाओं को लेकर भी होता रहता है । पति यदि ज्‍यादा सेक्‍सी है और पत्‍नी कम तो भी पति का पत्‍नी से अंसतुष्‍ट होना देखा जाता है । इसी प्रकार यदि पत्‍नी ज्‍यादा सेक्‍सी है और पति कम तो भी मनमुटाव होता है । जीवन के लिए सेक्‍स बहुत ही महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है । इसको यदि ठीक से नहीं समझा जाता है तो कई तरह की कठिनाईयां आ जाती हैं । यदि पति पत्‍नी आपस में सेक्‍स के मामले में एक समझ रखें तो झगडे कम ही होती हैं । अक्‍सर देखा गया है कि पति ज्‍यादा सेक्‍सी होता है, वह अपना प्रभाव जमाकर पत्‍नी से शारीरिक संबंध स्‍थापित करने का हमेशा इच्‍छुक रहता है, बिना इस बात को समझे कि पत्‍नी राजी भी है या नहीं । बहुत कम मामलों में ऐसा पाया जाता है जहां पति कम और पत्‍नी ज्‍यादा सेक्‍सी होती है ।यदि पति कम सेक्‍सी होता है तो पत्‍नी कभी भी संतुष्‍ट नहीं हो पाती । परोक्ष रुप से वह वैवाहिक जीवन को नरक समझ बैठती है । इसलिए दोनों को इस बात का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए कि सेक्‍स के मामले में उसके जीवन साथी का क्‍या विचार है । यदि एक कम सेक्‍सी है तो उसे अपने विचार तुरन्‍त प्रकट कर देने चाहिए । समय समय पर यदि दोनों एक दूसरे की भावनाओं को समझते रहेंगे तो मनमुटाव के कारणों पर काबू पाया जा सकता है । इस बारे में असफल होने पर जाने अनजाने दोनों के दिल दूसरे मामलों में भी ठीक से एक नहीं हो सकते । दोनों को यह समझना चाहिए कि अति हमेशा बुरी होती है और न्‍यूनता एक कमी । इसको रोटी के मामले में समझा जा सकता है । जैसे यदि कोई ज्‍यादा रोटी खाता है तो पेट दर्द होता है, नुकसान होता है और यदि रोटी न खायी जाए तो आदमी भूख से तडपता है । सेक्‍स के मामले में भी दम्‍पत्ति को मध्‍यम मार्ग अपनाकर चलना चाहिए ताकि जीवन में किसी प्रकार का मनमुटाव न हो ।
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मुझे शिकवा था तुमने प्‍यार नहीं किया स्‍नेह से भर न लिया मुझे दुख था तुमने पीडा दी नफरत की पुडिया दी लेकिन
अब कोई शिकवा नहीं कोई आरजू नहीं क्‍योंकि प्रेम दिया नहीं जा सकता स्‍नेह से भरा नहीं जा सकता कोई किसी को पीडा नहीं देता तडप और नफरत नहीं देता यह तो मन का भटकाव है जो दूसरों से अपेक्षा करता है भीख मांगता है भिखारी भी कहीं भीख देता है ?
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एक बात पति पत्‍नी को ध्‍यान में रखनी होगी कि दाम्‍पत्‍य जीवन में पति पत्‍नी के बीच छोटे मोटे झगडे होते ही रहते हैं । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि उन दम्‍पत्ति में प्रेम नहीं होता । झगडे को विशाल रुप नहीं देना चाहिए । यह तो साफ बात है कि जिस के साथ तुम ज्‍यादा रहोगे, उससे विचार मतभेद तो होगा ही । मामला पति पत्‍नी के बीच हो या दो मित्रों के बीच । हम देखते हैं कि दो मित्र आपस में खूब हंसते गाते हैं तो लडते भी हैं । पति पत्‍नी भी जीवनभर साथ साथ हंसते गाते हैं तो झगडा भी करेंगे । इस बात को ध्‍यान से समझ लेना चाहिए । इसको स्‍वीकार भाव से अपनाना चाहिए । झगडा स्‍थायी नहीं होता है, आज है कल नहीं होगा । यह भी ध्‍यान में रखना चाहिए कि छोटे मोटे झगडे हर पति पत्‍नी में होती हैं, तुम पति पत्‍नी के बीच ही नहीं हो रहे हैं । अपना आत्‍मबल एवं सहनशीलता नहीं खोनी चाहिए ।
व्‍यक्ति को इतना संवेदशील होना चाहिए कि वह दूसरों की भावनाओं को समझ सके । आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है, इसको केवल संवेदनशील होकर भी समझा जा सकता है, जरुरी नहीं है कि आग में हाथ डालकर ही पता लगाया जाए कि हाथ जल जाता है ।
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लो सुबह आ गई रात ढलने के बाद लो खुशियां आ गई दुखों के बाद एकमस्‍त घटा सी छा गई तो मैंने पूछा - कौन लाया इस प्रकाश को उत्‍तर मिला – तुम मैं सकपकाया कौन लाया था उस अंधेरे को उत्‍तर मिला – तुम ।


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पति पत्‍नी के बीच एकरुपता न होने का एक कारण बदली परिस्थितियों को स्‍वीकार करने में हिचकिचाहट भी है । यदि पति प्रभावशाली है और पत्‍नी कम प्रभावशाली हो तो दिल में एक धारणा समा जाती है कि अब ठीक है । पति की नैचर ही कुछ ऐसी होती है कि जिसमें पति चाहता है कि मेरा स्‍थान हमेशा ऊंचा रहे । बातचीत के मामले में, सम्‍मान के बारे में, निर्णय लेने के बारे में, धन कमाने के मामले में और सामाजिक परिस्थितियों में पहल मेरी हो, ऐसा पति सोचता है । विवाह के एक दो साल तक तो पति की लगभग सभी इच्‍छाएं पूर्ण हो जाती हैं । उसे पत्‍नी से ज्‍यादा सम्‍मान मिलता है और किसी मामले में निर्णय भी पति का ही माना जाता है । स्थिति तब बदल जाती है जब धीरे धीरे पत्‍नी भी अपने अधिकार मांगती है । पत्‍नी की महत्‍वाकांक्षा बढने लगती है और मामलू विशेष पर अपना प्रभाव दिखाने लगती है । यदि पति से ज्‍यादा पत्‍नी का सम्‍मान होने लगे और यदि पति से ज्‍यादा पत्‍नी कमाने लग जाए तो पति के अंहकार पर करारी चोट पहुंचती है । वह अपनी पत्‍नी से कटा कटा रहने लगता है । ऐसे में वह अपनी पत्‍नी का कभी भी उत्‍साह नहीं बढा पाता है, बल्कि निरुत्‍साहित करता है । परिणाम पत्‍नी नाराज होने लगती है । पत्‍नी को लगता है कि मेरा जीवन साथी मेरा सहयोगी नहीं है, बल्कि रुकावट पैदा करने वाला ईर्ष्‍यालू मानव है । पति भी परेशान रहता है । वह चाहकर भी अपने अंहकार को समझ नहीं पाता है । अपने मित्रों के बीच व्‍यंग्‍य का शिकार बनता है । अपने तनाव को वह अपनी पत्‍नी पर नाराज होकर प्रकट करता है । इस प्रकार पत्‍नी अपने पति की मनोस्थिति को समझकर भी नासमझी से काम लेती है । यदि ऐसी स्थिति में पत्‍नी अपनी सहनशीलता और प्रेम से अंतिम सांस तक काम में ले तो तनावपूर्ण स्थिति से दोनों बच सकते हैं । पति को भी चाहिए कि वह पत्‍नी का सम्‍मान करना सीखे और बजाए अंहकार में जलने के, उससे सीखने की भावना उत्‍पन्‍न करे और अपने जीवन में प्रगति करे । कई बार ऐसी स्थिति में पत्‍नी अपने पति पर तुनुकमिजाजी और द्वेष का आरोप लगा देती है । कोई भी पति बर्दाश्‍त नहीं करता कि उसकी पति ही उसको जला कटा सुनाए ।
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