तुम्हारी जो स्वाभाविक स्थिति है, उसे आप स्वीकार भाव से जीओ । कैसे जीवन में अवेयर होकर जीया जा सकता है । यह जरुरी नहीं है कि सुख ही सुख आएं जीवन में । जैसा भी है ठीक है । मात्र प्रवचन पढ लेने से या सुन लेने से परिवर्तन आ जाएगा, इसमें संदेह है । अपनी क्षमताओं में वृदिध करना और जीवन में एकरुपता व सरलता लाने का प्रयास करना चाहिए । प्रयासों से ही पाजिटिव स्थिति आ सकती है । यह जरुरी नहीं है कि कुछ खास किया जाए । जो भी काम किया जाए उसके लिए यह भाव हो – यह कार्य मेरी स्वीकृति से हो रहा है ।
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अच्छे विचार है, मेरी आपको हार्दिक शुभकामनायें !
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