Monday, August 23, 2010

क्‍या है संसार में ? इस दौड में, कुछ भी ऐसा नपहीं है जो एक संतोष प्रदान करता हो । मन के भटकाव के कारण ही तो कई बार निराशा होती है, अपने प्रियजनों के प्रति क्रोध आता है । बुदिध के तल पर सोचकर हम वास्‍तविकताओं से वंचित रह जाते हैं । अंहकार की वजह से हम अपने को प्रेमपूर्ण होने के मार्ग से कोसो दूर कर लेते हैं । मन,बुदिध और अंहकार की वजह से हम भटक जाते हैं । अपनी सृजनात्‍मक शक्ति को भी नष्‍ट कर डालते हैं । जब हम संसार की दौड में निराश हो जाते हैं तो धर्म का मार्ग खोजते हैं । लेकिन तब भी क्षणिक आशा के बाद निराशा ही हाथ लगती है । तब संसार एवं संन्‍यास के बीच एक विवाद उत्‍पन्‍न होने लगता है ।

No comments:

Post a Comment