Sunday, August 8, 2010

एक बार एक युवक इन्‍टव्‍यू देने जाता है तो उसके बुजुर्ग उसे समझा देते हैं – बेटे हमने भी अपनी जिन्‍दगी में बहुत से इन्‍टरव्‍यू दिये हैं, वहीं सवाल होते हैं । मैं अपने अनुभव से कुछ उत्‍तर बताता हूं । पहला सवाल पूछेंगे – तुम्‍हारी आयु कितनी है, तुम कहना 28 वर्ष, फ्‍रि पूछेंगे अनुभव कितना है, तुम कहना 10 वर्ष, फ्‍रि पूछेंगे तुम्‍हारा गांव किस जिले में है, तब तुम कहना इलाहाबाद । लडके का पहला इन्‍टरव्‍यू था । जीवन के क्षेत्र में पहला कदम था । अपने बुजुर्गों का अनुभव अपने पास रख लिया था । इन्‍टरव्‍यू हुआ – पहला प्रश्‍न पूछ लिया – कितना अनुभव है तुम्‍हें । रटा रटाया उत्‍तर था – 28 वर्ष । इंटरव्‍यू लेने वाला हैरान । पूछा – उम्र कितनी है ? उत्‍तर दिया – 10 वर्ष । प्रश्‍न किया अमेरिका की राजधानी का नाम बताओ । उत्‍तर मिला – इलाहाबाद । हमारे सभी उत्‍तर रेडिमेड हैं, तैयार हैं । चूंकि यह बात हमारे बडों ने बतायी थी इसलिए ठीक है, ऐसा सोचते हैं हम । हम भी अपने दिमाग से, विचार से, मौलिकता से काम नहीं लेते । हां, शुरु शुरु में कठिनाइयां आती हैं, गलतियां होती हैं लेकिन शीघ्र ही घबरा जाते हैं । अपने से भरोसा उठ जाता है । तुरन्‍त अपने बुजुर्गों के अनुभव ढूंढते हैं । अब पुराने अनुभव, कुछ तीर कुछ तुक्‍के, ठीक बैइ जाते हैं निशाने पर । यदि एक अंधा व्‍यक्ति अंधेरे में तीर चलाए तो सम्‍भव है कि कुछ निशाने पर लग जाएं । इसका यह अर्थ नहीं हो जाता कि दृष्टिहीन निशानेबाज है । अर्थ यह है कि समय बदला है, समय के साथ बदलना चाहिए । जो कल ठीक था जरुरी नहीं है कि आज ठीक हो । बदलते समय के साथ अपने को बदल लेना चाहिए । यदि आज कृष्‍ण भगवान होते तो शायद वे भी धोती की जगह जींस पहन रहे होते । जिसने अपने को समय के अनुसार नहीं बदला है, वे पीछे रह जाते हैं, असफल रह जाते हैं और जिन्‍होंने अपने को समय के साथ बदला है, वे आगे बढते हैं, सफलता पाते हैं ।

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