कई सवाल है । कई बार तो सवालों का एक ऐसा भार आ पडता है कि उनको सुलझाते सुलझाते आदमी खुद उलझ जाता है । केवल साहसी व्यक्ति ही उलझने से बच सकते हैं । मैंने सुना है विवाह एक गाडी के रुप में है और पति पत्नी उस गाडी के दो पहिए हैं । दोनों का समान रोल है । दोनों का मजबूत होना जरुरी है । तभी ठीक से चल सकती है गृहस्थी की गाडी ।
विवाह के बाद लडकी की स्थिति कुछ बदल जाती है । उसे कुछ परम्पराओं और मर्यादा के बीच रहना पडता है । उसके कई जन्मसिद्ध अधिकार दब जाते हैं और वह अपने उन अधिकारों को पाने के लिए प्रेम का रास्ता अपना सकती है । यदि लडकर, झगडकर और ऊंची ऊंची बाते करके, तर्क देकर अपनी बात मनवाने की कोशिश की जाती है तो उसे कुछ नहीं मिलता । जो मिला हुआ था, वह भी खोने का भय है । हां, कंवेंस करके, अपने प्रभावशाली व्यक्तिव में विकास करके, कष्ट सहन करके, दूसरों के लिए त्याग करके विजय पायी जा सकती है । अब कोई युवती घर परिवार को छोडकर बाहर के लोगों में आदर, सेवाभाव दिखाती है तो उसका सम्मान नहीं किया जाता है । विवाह के बाद कई तरह की परम्पराएं है, समाज के सोचने का एक दायरा है । उसके अंतर्गत कुछ भी किया जा सकता है । कई बार अपने व्यक्त्वि को भी बदलना पडता है । यह स्थिति है हमारे समाज की । जब स्त्री विवाह के बाद दूसरे घर में आती है तो उसे नये घर के मुताबिक ढलना होता है और इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एक गुलाम की सी स्थिति बना ले और अपने गुणों को, अपने व्यक्त्वि का नाश कर डाले । बल्कि सही समय का इंतजार करना चाहिए । प्रेम कर और सही समय का इंतजार, नये घर में आयी बहू को दो तीन साल नये माहौल में ढलने में लग जाते हैं, तभी वह अपने बीच अपनी मर्जी के परिवर्तन ला सकती है या अपनी पहचान बना सकती है ।
सच्चाई को वयां करती अच्छी रचना ,बधाई
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