Wednesday, August 25, 2010
विडंम्बना है वैवाहिक जीवन में । सबके अपने अपने अधिकारों की मांग का ऐसा सिलसिला चल पडता है कि एकपल तो उस जाल में फंसे सभी व्यक्ति अपने को दुखी महसूस करने लगते हैं । हर कोई अपने को निर्दोष समझता है । लेकिन वास्तविकता यह है कि जहां भी झगडा होता है और दोंनों ही बडी अपने अधिकारों की बात करते हैं तो दोनों ही दोषी होते हैं । लेकिन दोनों पक्षों के अपने अपने तर्क होते हैं । यह माना जा सकता है कि एक पक्ष का दोष कम हो और दूसरे का ज्यादा । लेकिन झगडें के कारणों में कोई पक्ष यह दावा करे कि मेरा दोष नहीं, तो वह गलत है । उस स्थिति में झगडा नहीं होगा जब एक पक्ष् झगडे की नौबत आने से पहले ही अपने हथियार डाल दे, यानि समझौतावादी नीति का पालन करे । यदि आपका झगडा किसी से नहीं होता है और आप यह समझ बैठे हैं कि मैं बहुत सहनशील और प्रेमपूर्वक हूं कि झगडा नहीं करता, यह एक भूल भी हो सकती है । हो सकता है कि दूसरा पक्ष आपसे भी ज्यादा सहनशील हो जो झगडा पसन्द न करता हो । इसका अर्थ यह नहीं कि आप की प्रवृति तब समाप्त हो जाएगी जब दूसरा पक्ष ही लडने को तैयार नहीं । गलती हो जाती है कि मैं समझदार हूं, सहज हूं इसलिए झगडा नहीं हुआ, इसको जानने के लिए गहरे से विचार करना होगा । ****
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अधिक संवेदनशीलता का इस दुनिया में सिर्फ मज़ाक उड़ाया जाता है....
ReplyDeleteशुभकामनायें !