Tuesday, August 10, 2010

स्‍त्री स्‍वयं ही अपनी शत्रु है । वह अपने को पूर्ण नहीं समझती है । वह पुरुष वर्ग के प्र‍ति हमेशा सन्‍देह की नजर रखती है और बिना पुरुष के अपने को अधूरा समझती है । ऐतिहासिक नजर से देखाजाए तो पता चलता है कि पुरुष वर्ग ने स्‍त्री वर्ग को हमेशा दबाकर ही रखा है । उस पर हमेशा अत्‍याचार ही किए हैं । सती प्रथा, बाल विवाह, कन्‍या वध, विधवा का बंदिश भरा जीवन, पुरुषों का स्‍त्री को भोग की वस्‍तु समझना, दहेज प्रथा, वेश्‍यावृति और स्‍त्री की खरीद फरोत आदि हजारों तरीकों से दबाया गया । स्‍त्री की शिक्षा, आर्थिक साधन, समाज में स्‍थान, प्रगति के अवसर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया जिससे स्‍त्री अपने प्रति न्‍याय कर सके । शायद यही कारण हैं कि आज भी स्‍त्री डरी हुई है । परदा प्रथा और बलात्‍कार जैसी बुराईयां भी स्त्रियों के बारे में हैं । लेकिन मजेदार बात तो यह है कि स्त्रियों की दशा गिराने में पुरुष वर्ग का हाथ है तो स्त्रियों को ऊंचा उठाने में भी पुरुषों का हाथ होता रहा है । अपने आप उठना उनके लिए कठिन रहा है । यही कारण है कि पुरुष ने हमेशा स्‍त्री की दुर्बलता का लाभ उठाया है । लेकिन स्‍त्री सिर्फ यही याद रखती है कि पुरुष ने नीचे गिराया लेकिन वह भूल जाती है कि पुरुष ही उसे ऊपर उठाता रहा है ।
फ्‍रि भी यह संसार चलताहै और चलता ही रहेगा । बिना स्‍त्री के पुरुष अधूरा है और बिना पुरुष के स्‍त्री । क्‍योंकि स्‍त्री और पुरुष का जन्‍म दोनों के संगम से ही होता है । दोनों के बीच की यह कशमकश चलती रहेगी । फ्‍रि भी स्‍त्री पुरुष के प्रति और पुरुष स्‍त्री के प्रति आसक्‍त ही रहेंगे । दोनों एक दूसरे से प्रेम भी करते हैं और नफरत भी । दूसरी बात, चारों ओर एक ऐसी राजनीति चल रही है जिस देखकर बहुत ही अचरज होता है । प्रत्‍येक परिवार में, समाज में और प्रत्‍येक देश में हर स्‍तर पर हर कोई एक दूसरे से राजनीति खेल रहा है । जो जितनी कुशलता से राजनीति खेलता है वह उतना ही कामयाब रहता है ।

2 comments:

  1. prdip bhaayi kiyaa baat he aap to kaafi chupe rustm lekhk hen itne dinon se yeh laal khaan chupoaa thaa bhaayi bhut khub likh rhe ho ise brqraar rkhon yeh ptthr sch kaa drpn dikhaane ke liyen jo aap uchaal rehe hen inkaa faaydaa desh smaaj o zrur milegaa. akhtar khan akela kota rajsthan

    ReplyDelete